

विजय श्रीवास्तव
वाराणसी। आखिरकार पत्रकार विक्रम जोशी मौत से जंग हार गया। दो दिन तक मौत से जद्दोजहद के बाद उसकी मौत हो गयी। अपनी भांजी से छेडखानी की शिकायत पुलिस से करने पर दंबग बदमाशों ने उसके सिर पर गोली मार कर उसकी हत्या कर दी। क्या कोई पत्रकार किसी दूसरे की आवाज उठायेगा जब उसे अपने परिवार की रक्षा के लिए जान की कुर्बानी देनी पडती है। यही नहीं पुलिस से शिकायत करने के बाद भी उसके कान पर जूं नहीं रेंगती है। हाॅ घटना के बाद योगी सरकार के जाबाॅज पुलिस को अलाउद्ीन का चिराग मिल जाता है और फटाफट उसने एक-दो नहीं बल्कि 9 बदमाशों को गिरफ्तार कर लिया जाता है। इतना ही नहीं गाजियाबाद कप्तान की भी नींद खुली और उन्होंने तत्काल प्रताप विहार के चैकी इंचार्ज को निलंबित भी कर दिया।
गौरतलब है कि पत्रकार विक्रम जोशी ने भांजी से छेड़छाड़ और अभद्र कमेंट करने वाले युवकों की शिकायत पुलिस से की थी। विक्रम द्वारा पुलिस से शिकायत किए जाने से नाराज आरोपियों और उनके कई साथियों ने सोमवार रात घेर कर उन्हें बेहद करीब से सिर में गोली मारी। गोली लगने से घायल पत्रकार विक्रम जोशी की गाजियाबाद के नेहरू नगर स्थित यशोदा अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। वैसे घटना के बाद से ही विक्रम की हालत नाजुक बनी हुई थी और उनका अस्पताल में इलाज चल रहा था। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था लेकिन सबकुछ बेकार। आखिर का वह जिन्दगी का जंग हार गया।
परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने विक्रम की शिकायत को लेकर गंभीरता से नहीं लिया और लापरवाही बरती। हाॅ शिकायत के बाद मामले में लापरवाही बरतने वाले चैकी इंचार्ज को सस्पेंड कर अपने तत्परता का परिचय देने का अवश्य काम किया है जैसा अन्य हत्या सम्बन्धी घटनाओं के बाद पुलिस करती है लेकिन काश यही अगर इस तरह की घटनाओं को गंभीरता से पुलिस लेती तो शायद इस पत्रकार सहित न जाने कितने लोंगो की जान बचायी जा सकती है शायद यह प्रदेश में पैर्टन सा बन गया है कि चलो घटना हो गयी तो कभी चैकी इंचार्ज, तो कभी एसएचओ, तो कभी सीओ और कहीं बहुत बडी घटना हो गयी तो कप्तान को भी संस्पेंड या लाइनहाजिर और कभी-कभी ट्रांसफर की सजा देकर इतिश्री कर दी जाती है। अगर हो हल्ला अधिक होता है तो छोटी जांच से लेकर बडी जांच बेैठा दी जाती है। जैसा इस प्रकरण में कर दिया गया है। कुछ दिन तक तो उसके घर के बाहर सुरक्षा कर्मी से लेकर सुरक्षा की गारंटी दी जाती रहेगी फिर उसके बाद वह परिवार जीवन भर उस दंभ से जूझता रहता है। इतना ही नहीं कई बार ऐसी घटनाओं के बाद कोर्टकचहरी में गवाही के चक्कर में फिर बदमाशों का नग्न टाडंव देखने को मिलता है। बहरहाल एसएसपी कलानिधि नैथानी ने चैकी इंचार्ज राघवेंद्र को सस्पेंड कर दिया है। अपराधियों को पकडने के लिए 6 पुलिस टीमें लगाई हैं। साथ ही पूरे मामले की जांच क्षेत्राधिकारी प्रथम को सौंप दी गई है।
अब आईए दूसरी तरफ एक पत्रकार की मौत हुई है तो राजनीति भी होना स्वाभाविक है। विपक्ष जहां प्रदेश में योगी सरकार के राज्य में प्रदेश में हो रहे अपराध पर हो हल्ला करेगा तो प्रदेशशासित पार्टी भाजपा अपराधियों की गिरफ्तारी, चैकी इंचार्ज को संस्पेड करने व जाॅच की बात कर अपनी पीठ थपथपायेगी। चैनलों पर शुरू होगी डिबेट। कांग्रेस की प्रियंका गांधी का कमेंट भी आ गया और बोलीं पत्रकार पर जानलेवा हमला, जंगलराज में आमजन कैसे सुरक्षित महसूस करेगा ? अभी दो-तीन दिन हर पार्टी शब्दों से हमला करेगें। कुछ पार्टी के लोग मुआवजा की मांग भी कर सकते हैं और यह भी हो सकता हैं कि योगी सरकार पत्रकारों को खुश करने के लिए दो-चार लाख दे भी दें। यह भी हो सकता है कि कुछ पत्रकार संगठन भी हो हल्ला करें लेकिन जहां तक अखबारों व चैनल में स्थान व समय देने की बात है तो भी उनके मालिकान पर निर्भर करेेगा। फिर दो-चार दिन बाद सब कुछ सामान्य हो जायेगा। एक माह बाद शायद यह सब कुछ उस परिवार को छोड कर सब लोग भूल भी जायेंगे।
आजादी के 73 वर्ष के बाद भी आज पत्रकारों के अधिकारों के लिए न तो कोई नियम-कानून बनें और नहीं उनके सुरक्षा के कोई ठोस उपाय। कई आयोग बने लेकिन वह भी कुछ तो सरकारें कभी उनके लिए गंभीर नहीं रही तो कभी अखबारों के मालिकान। मालिकान के इशारों पर ही आज पत्रकारों के चलने की नियति बन गयी हैं वहीं मालिकान भी सरकार का आशीर्वाद पाने के लिए अपने पत्रकारिता के मिशन को ही दांव पर लगाने से भी नहीं चूकते हैं। पत्रकारों के हक लडाई लडने वालें तो देश में सैकडों की संख्या में संगठन हैं लेकिन आज तक उन्होंने कोई गिनाने लायक उपलब्धि हासिल नहीं कर पाए। कई प्रेस मालिकानांे ने तो अपने पत्रकारों किसी भी संगठन में शामिल न होने पर ही पाबन्दी लगा रखी है।