पं. प्रसाद दीक्षित
धर्म, कर्मकांड एवं प्रख्यात ज्योतिष शास्त्र विशेषज्ञ
-देवी चंद्रघंटा के उपासना से विनम्रता का होता है विकास
वाराणसी। नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा का सर्वोत्तम विधान बताया गया है। मां चंद्रघंटा सच्चे एवं एकाग्र भक्तों को बहुत जल्दी ही फल देती हैं तथा उनके कष्टों का निराकरण तुरंत करती हैं। इनकी उपासना से विनम्रता का विकास होता है। देवी चंद्रघंटा मन की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित कर भक्तों के भाग्य को समृद्ध करती हैं।
पं. प्रसाद दीक्षित ने बताया कि चंद्र हमारी बदलती हुई भावनाओं का प्रतीक है। शास्त्र में उल्लिखित है कि चंद्रमा मन का प्रमुख कारक ग्रह माना गया है। घंटे का अभिप्राय मंदिर में स्थित घंटा एवं उसकी ध्वनिकंपन से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा है। अस्त व्यस्त मानव मन जो विभिन्न विचारों भावों में उलझा रहता है। मां चंद्रघंटा की आराधना कर सांसारिक कष्टों से मुक्ति पाकर दैवीय चेतना का साक्षात्कार करता है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। इनके 10 हाथ हैं, जिनमें एक हाथ में कमल का फूल, एक में कमंडल, एक में त्रिशूल, एक में गदा, एक में तलवार, एक में धनुष, और एक में बाण है। इनका एक हाथ हृदय पर, एक हाथ आशीर्वाद मुद्रा में, और एक अभय मुद्रा में रहता है। गले में सफेद फूलों की माला रहती है। चंद्रघंटा का वाहन बाघ है। देह धारियों में शक्ति रूप का स्थान मणि चक्र है। साधक इसी मणि चक्र में अपना ध्यान पहुंचाता है। मां चंद्रघंटा सच्चे भक्तों को बहुत जल्दी फल देती हैं तथा उनके कष्टों का निवारण करती हैं । इनका स्वरूप दानव-राक्षस को भयभीत करने वाला तथा उनकी हिम्मत पस्त कर देने वाली होती है। मां की प्रचंड घंटे की ध्वनि बुरी शक्तियों को भागने पर मजबूर करती हैं। इसके विपरीत साधकों तथा भक्तों को इनका स्वरूप शांत और भव्य दिखाई देता है ।
मां चंद्रघंटा की आराधना से साधक में ना केवल साहस और निर्भयता का, बल्कि सौम्यता और विनम्रता का भी विकास होता है। उनकी देह और स्वर में दिव्य कांति तथा मधुरता का समावेश हो जाता है तथा उनके शरीर से तेज- सा निकलता जान पड़ता है स मां चंद्रघंटा जिस पर दृष्टि डालती हैं, उन्हें अदभुत शांति और सुख का अनुभव होता है। आज माता को लाल पेड़ा तथा सफेद पुष्प चढ़ाना सर्वोत्तम रहेगा।