नवरात्रि : द्धितीय दिन माॅ देवी ब्रह्मचारिणी शक्ति का प्रतीक, दर्शन से मिलता है अनंत लाभ

 

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पं. प्रसाद दीक्षित
-देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय है
वाराणसी। नवरात्रि के नौ दिन में माॅ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। नवरात्रि के दूसरे दिन सभी भक्त ध्यानमग्न होकर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। देवी ब्रह्मचारिणी तप की शक्ति का प्रतीक हैं। मां का यह स्वरूप भक्तों को अनंत शुभ फल देने वाला है। सर्वव्यापी ब्रह्मांडीय चेतना स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी के रूप में भक्तों को आशीष देता है। ब्रह्म का अर्थ वह परम चेतना है जिसका न तो कोई आदि है और ना कोई अंत। जिसके पार कुछ भी नहीं है।

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नवरात्रि के दूसरे दिन भक्त ध्यानमग्न होकर परम सत्ता की दिव्य अनुभूति मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। आदि शक्ति मां की इस स्वरूप की आराधना करने वालों की शक्तियां असीमित एवं अनंत हो जाती हैं। उसके समस्त दुख दूर हो जाते हैं तथा वह सभी सुखों को प्राप्त कर लेता है। सत, चित, आनंदमय ब्रह्म की प्राप्ति कराना ही ब्रह्मचारिणी का स्वभाव है। चंद्रमा के समान निर्मल कांति से युक्त ब्रह्मचारिणी कौमारी शक्ति का स्थान योगियों ने ‘‘स्वाधिष्ठान चक्र‘‘ में बताया है। इनके एक हाथ में कमंडल तथा दूसरे में चंदन की माला रहती है। अपने भक्तों को मां ब्रह्मचारिणी प्रत्येक काम में सफलता देती हैं। वे मार्ग से कभी नहीं हटते स जीवन के कठिन संघर्षों में भी अपने कर्तव्य का पालन बिना विचलित हुए करते हैं। इनका वाहन पर्वत की चोटी है।

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यह मान्यता है कि देवी दुर्गा का यह रूप साधकों को अमोघ फल प्रदान करता है। साधक को यश, कीर्ति, सिद्धि एवं सर्वत्र विजय की प्राप्ति अवश्य होती है। नवदुर्गा में देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय है। वे गहन तप में लीन हैं। देवी का मुख दिव्य तेज से भरा है तथा भंगिमा शांत है। मुख मंडल पर विकट तपस्या के कारण अद्भुत तेज और अद्वितीय कांति का अनूठा संगम है, जिससे तीनों लोक प्रकाशमान हो रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त मां ब्रह्मचारिणी का व्रत करता है वह कभी भी अपने जीवन में नहीं भटकता। अपने मार्ग पर स्थित रहता है तथा उसे जीवन में सफलता भी अवश्य प्राप्त होती है। आज के दिन देवी के नवार्ण मंत्र का जप करना श्रेष्ठ होता है। सभी भक्त गण आज मां ब्रह्मचारिणी देवी की सविधि पूजन अवश्य करें और पुण्य के भागी बनें।

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