-सरकारी डॉक्टरों के लिए जारी फरमान
-प्राइवेट प्रैक्टिस करने वालें डाक्टरों के विरूद्ध होगी दण्डात्मक कार्यवाही
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में अब अगर सरकारी डाक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करते पाये गये तो उनकी खैर नहीं। योगी सरकार के शासन में अब कोई भी सरकारी डॉक्टर ना तो प्राइवेट प्रैक्टिस कर पाएगा और ना ही किसी निजी अस्पताल में अपनी सेवाएं दे सकेगा। सरकार ने उनके विरूद्ध तत्काल दण्डात्मक कार्यवाही करने का आदेश दिया हैं साथ ही प्राइवेट प्रैक्टिस करने वालें डाक्टरों की सूची मांगी है।
शनिवार शाम स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने डॉक्टरों के लिए कड़ी चेतावनी देते हुए बकायदे गाइडलाइन जारी कर दी. अपनी प्रेस रिलीज में स्वास्थ्य मंत्री ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि सरकारी डॉक्टर अगर निजी प्रैक्टिस करते या नर्सिंग होम में अपनी सेवाएं देते पाए जाएंगे तो उनको बख्शा नहीं जाएगा। प्रेस रिलीज में कहा गया है कि प्राइवेट प्रैक्टिस में लिप्त सरकारी डॉक्टर किसी भी दशा में बख्शें नहीं जाएंगे। राजकीय सेवा में रहते हुए प्राइवेट प्रैक्टिस करना एक जघन्य अपराध है। ऐसे चिकित्सकों को चिह्नित कर तत्काल उनके खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई की जाएगी।इसके साथ ही निजी प्रैक्टिस करने वाले सरकारी डॉक्टरों की सूची मांगी जिससे उनके खिलाफ कार्यवाही की जा सके।
स्वास्थ्य मंत्री ने अपर मुख्य सचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य श्री अरुण कुमार सिन्हा को निर्देश दिए कि जिन चिकित्सकों के प्राइवेट प्रैक्टिस में लिप्त होने की जानकारी प्राप्त हुई है, उनके विरूद्ध तत्काल दण्डात्मक कार्यवाही की जाए। इसके अलावा उन्होंने सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों की सूची भी तत्काल उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं।
स्वास्थ्य मंत्री ने सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा, वे सुनिश्चित करें कि चिकित्सक समय से अस्पतालों में मौजूद रहें और ओपीडी में बैठकर निर्धारित समय तक मरीजों का उपचार करें।
सिद्धार्थ नाथ सिंह ने इस बाबत एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा कि प्रदेश सरकार की मंशा है कि समाज के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति को निःशुल्क और बेहतर चिकित्सा सुविधा मिले, लेकिन चिकित्सकों के प्राइवेट प्रैक्टिस में लिप्त होने से मरीजों को पूरी तरह सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। जिसकी वजह से मरीज निजी चिकित्सालयों में इलाज कराने को मजबूर होते हैं। इससे जहां मरीजों का उचित उपचार नहीं हो पाता, वहीं उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान भी होना पड़ता है।