
पं. प्रसाद दीक्षित
न्यासी व धर्म-कर्म विशेषज्ञ
काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी।
-पांचाग: सोमवार 06 अगस्त से रविवार 12 अगस्त 2018 तक
वाराणसी। मंगलवार कामदा एकादशी व्रत करने से जीवन की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। व्रत करने का विधान शास्त्रों में विधि विधान से बताया गया है। भारतीय संस्कृति का मूल तत्व उसकी धार्मिक परंपरा है। इस परंपरा का इतिहास बहुत पुराना है। ऋग्वेद की पृथ्वीसूक्त के अनुसार यह हमारी मातृभूमी अनेक प्रकार की जन को धारण करती है। यह जन अनेक प्रकार की भाषाएं बोलते हैं और नाना प्रकार के धर्म को मानते हैं, किंतु भारतवर्ष की अंतरात्मा दुख लोक की इस विविधता से कभी आक्रांत नहीं हुई। यहां के मनीषियों ने विविधता की मूल में छिपी एकता के इन तत्वों को खोजा जो हमारे देश की सांस्कृतिक एकता को आज भी थामे हुए हैं।
धार्मिक परंपरा में हमारे व्रत और त्योहार हैं। हिमाचल से लेकर दक्षिण प्रदेश तक और बंगाल से लेकर गुजरात तक परंपरा देश में विद्यमान है, जो पूरे वर्ष चलती रहती है। देवी देवताओं में अटूट विश्वास चाहे वह वैदिक देवता हो अथवा लौकिक, भारतीय लोक की विशेषता रही है। भारत के किसी भी प्रदेश में चले जाए वहां प्रतिवर्ष समय-समय पर किसी न किसी देवी देवता के मेले जुड़ते लगे रहते हैं और उत्सव होता है। लोक देवताओं के प्रति उनका जो अटूट विश्वास है उसे व्रत या आस्था कहा गया है। जब देवी-देवताओं के प्रति इस प्रकार की भक्ति भावना का प्रदर्शन, उत्कंठा, उमंग एवं उत्साह के साथ होता है उसे त्यौहार उत्सव कहते हैं। इस प्रकार के व्रत एवं त्योहार हमारे देश में मनाए जाते हैं।
विष्णु शयनी एकादशी का विशेष महत्व होता है । आज से भगवान विष्णु 4 माह के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं, इसलिए छब्बीस एकादशियों में आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को विष्णु शयनी एकादशी करते हैं। एकादशी व्रत के दिन भोजन का निषेध माना गया है, तथापि फल, जल, दूध का आहार करके भी उपवास हो सकता है किंतु निर्जला एकादशी के दिन कोई चीज खाना तो दूर जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है। एकादशी की उत्पत्ति के विषय में श्रीकृष्ण-युधिष्ठिर संवाद के अंतर्गत कुछ बातें बताई गई हैं जो इस प्रकार है –
प्राचीन कृतयुग में तालजंग दैत्य का पुत्र मुर नाम का बलशाली दानव था देव दानव युद्ध में उसने इंद्राणी देवताओं को परास्त कर स्वर्ग पर अपना अधिकार जमा लिया तो भगवान बैकुंठपति विष्णु से वह वैर कर बैठा। बहुत दिनों तक युद्ध चला पर वह दानव परास्त नहीं हुआ। भगवान ने विश्राम करने के विचार से बद्रीवन के पास सिन्हावती नामक महा गुफा में प्रवेश किया। उसमें प्रवेश कर भगवान विष्णु योगनिद्रा में विश्राम करने लगे। इधर चंद्रावती नगरी में रहकर मूल दानव सर्वजीत लोक को अपने अधीन कर सर्वलोक का शासन करने लगा तो उस गुफा का द्वार भी पता लगाकर वह दुष्ट मूर भगवान के समीप युद्ध करने पहुंच गया। प्रभु योग निद्रा में लीन हैं यह देखकर वह आक्रमण करने का विचार बना ही रहा था कि भगवान के विग्रह से एक दिव्य शक्ति कन्या के रूप में सहसा प्रकट हुई और उसने मूर को युद्ध के लिए ललकारा। दानवेंद्र कन्या के साथ युद्ध करने लगा। उस कन्या ने भी शीघ्र ही मूर के सभी शस्त्र काट कर उसे विरत कर दिया तथा उसके वक्ष स्थल में एक मुक्का जमाया इससे वह धराशाई तो हुआ लेकिन पुनः उठकर भगवती की ओर दौड़ा तब महाशक्ति ने हुंकार मात्र से उस को भस्म कर दिया। उसके प्राण पखेरू उड़ चले और वह यमलोक चला गया। उसके सहयोगी शेष दानव पाताल चले गये। इसके बाद जब भगवान विष्णु जगे तो अपने समक्ष उपस्थित अपने से ही उत्पन्न महाशक्ति को दिव्य कन्या के रूप में देखकर पूछने लगे तुम कौन हो, इस दुष्ट दानव का वध किसने किया। कन्या बोली इस दुष्ट दानव ने इंद्र इत्यादि देवता को पदच्युत कर अपना साम्राज्य जमा लिया। फिर आप को मारने के लिए सेना शायनावस्था में ही युद्ध करने के लिए ललकारा तो आपके ही शरीर से निकल कर मैंने इससे युद्ध किया। आपकी कृपा से इसका वध कर इंद्र इत्यादि देवताओं को उनका स्थान दिलाया। यह सुनकर भगवान विष्णु प्रसन्न हो बोले हे देवी इस दानव के हनन से सभी देवताओं ने आनंद की सांस ली, अतः मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूं। तुम अपना मनचाहा वरदान मांग लो। कन्या रूप महाशक्ति बोली हे ‘परमेश्वर यदि आप मुझ से संतुष्ट हैं और मुझे वरदान देना चाहते हैं तो ऐसा वर दे की व्रत उपवास करने वाले भक्तजनों का उद्धार कर सकूं‘ तथा ऐसे भक्तों को जो किसी प्रकार का भी व्रत करते हैं आप उन्हें धर्म, ऐश्वर्य, भक्ति और मुक्ति प्रदान करें। तब भगवान विष्णु प्रसन्न होकर बोले हे देवी जो तुम कहोगी सब कुछ होगा। तुम्हारे जो भक्तजन हैं वह मेरे भी भक्त कहलाएंगे साथ ही तुम एकादशी तिथि के नाम से जानी जाओगी। एकादशी व्रत करने वालों को सर्वाधिक पुण्य प्राप्त होता है। सभी व्रत सभी दान से अधिक फल एकादशी व्रत करने से होता है। श्रावण मास में भगवान विष्णु के साथी भगवान शिव की भी पूजन करने का विधान है क्योंकि वर्तमान समय में श्रावण मास चल रहा है इसलिए कामदा एकादशी को भगवान विष्णु के साथ ही भगवान शिव की पूजन करने से सर्वश्रेष्ठ लाभ प्राप्त होता है आज के दिन नियमपूर्वक जो लोग पूजन करते हैं उन्हें मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है तथा सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।
पंचांग: सोमवार 06 अगस्त से रविवार 12 अगस्त 2018 तक
श्रावण कृष्ण पक्ष शुक्ल पक्ष 1940
विक्रम संवत 2075
सोमवार 06 अगस्त- श्रावण मास कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि रात्रि 3.09 तक, भद्रा दिन में 4.01 से रात्रि 3.09 तक, श्रावण सोमवार व्रत
मंगलवार 07 अगस्त- श्रावण मास कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि रात्रि 1.07 तक, कामदा एकादशी व्रत, भौम व्रत
बुधवार 08 अगस्त- श्रावण मास कृष्ण पक्ष की द्वादश तिथि रात्रि 10.53 तक
गुरुवार 09 अगस्त- श्रावण मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि रात्रि 8.30 तक, भद्रा रात्रि 8.30 से प्रारंभ, प्रदोष व्रत, मास शिवरात्रि व्रत
शुक्रवार 10 अगस्त- श्रावण मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि शाम 6.01 तक, भद्रा प्रातः 7.16 तक
शनिवार 11 अगस्त- श्रावण मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि दिन में 3.35 तक, स्नान दान की अमावस्या, हरियाली तीज, रोजगार मेला हरियाली अमावस (जयपुर)
रविवार 12 अगस्त- श्रावण मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि दिन में 1.12 तक, चंद्र दर्शन