
-सरकार ने 66 पैसे प्रति यूनिट वृद्धि का दिया था आदेश
-उप्र राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद की पहल पर राहत
लखनऊ। वर्ष के दूसरे दिन यूपी सरकार ने प्रदेशवासियों को जोरदार झटका देते हुए बिजली दरों में 66 पैसे प्रति यूनिट तक वृद्धि कर दी थी। खास बात यह रही कि इसके लिए विद्युत नियामक आयोग की अनुमति भी न लेकर गुपचुप ढंग से दरों में पावर कारपोरेशन ने वृद्धि कर दी गयी थी। जिसपर कल ही एक्शन में आते हुए विरोध में उप्र राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद विद्युत नियामक आयोग पहुंचा तो आयोग ने भी उपभोक्ताओं के हित को देखते हुए तत्काल राहत देते हुए इस पर रोक लगा दी।
गौरतलब है कि सरकार ने कोयले और तेल की लागत बढ़ने का हवाला देकर पावर कारपोरेशन ने इंक्रीमेंटल कॉस्ट के नाम पर इसी महीने से सभी श्रेणी के बिजली उपभोक्ताओं की दरें चुपचाप बढ़ा दीं। कारपोरेशन ने बिजली बिलों में 66 पैसे प्रति यूनिट तक की वृद्धि का आदेश जारी कर दिया। इसकी मार हर वर्ग पर पडने वाली थी। यहां तक की ग्रामीण क्षेत्र के उपभोक्ताओं के फिक्स चार्ज में भी बढोत्तरी करते हुए 400 के जगह 500 रूपये कर दिया था। जानकारी के अनुसार बिलिंग सॉफ्टवेयर में भी बदलाव की प्रक्रिया की तैयारी पहले ही शुरू कर दी गयी थी। यह जानकारी होते ही उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने नियामक आयोग पहुंच कर आयोग के अध्यक्ष आरपी सिंह को इसके विरोध में लोक महत्व जनहित प्रत्यावेदन सौंपा। इस पर आयोग ने दरें बढ़ाने को गलत ठहराते हुए अंतिम निर्णय किए जाने तक कार्यवाही पर रोक लगा दी है। परिषद अध्यक्ष ने आयोग को बताया कि कारपोरेशन ने उपभोक्ताओं के बिजली बिल में करीब 26 पैसे प्रति यूनिट के औसत से बढ़ोतरी की है। वर्मा के मुताबिक आयोग ने इस मामले पर कारपोरेशन से 13 दिसंबर को जवाब मांगा था। कारपोरेशन ने 20 दिसंबर को आयोग को जवाब भेजा और उसी दिन बिजली दरें बढ़ाने का भी आदेश जारी कर दिया, जबकि यह मामला आयोग के पास विचाराधीन था। कारपोरेशन की गणना को भी गलत ठहराते हुए परिषद ने कहा कि सही आगणन करने पर उलटा उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर बकाया निकल रहा है। बहरहाल अभी तत्कालिक रूप से भले ही उपभोक्ताओं के राहत मिल गयी है लेकिन आने वाले दिनों में उपभोक्ताओं को इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है।