सियासत व राजनीति ने खीच दी है मजहबी दीवारें, अन्यथा हमसब होते भाई-भाई : अनवर

विजय श्रीवास्तव
-विगत चार वर्षो से विकलांगों को कंधे पर उठा कर उनकी करते हैं मदद
-दो बार हार्ट अटैक होने व डाक्टरों के मना करने के बावजूद लेते हैं रिस्क
-अनवर आरपीएफ में हैं और डीआरएम आफिस में गेट पर देतें हैं डयूटी

वाराणसी। जरूरी नहीं कि समाज में बडे लोग ही नजीर पेश करें। कभी-कभी समाज में ऐसे लोग ऐसे नजीर पेश करते हैं कि उनको सलाम करने के लिए हाथ अपने आप उठ जाता है। कुछ ऐसा ही लहरतारा स्थित पूर्वोत्तर रेलवे स्थित डीआरएम आफिस में गेट पर कार्यरत सीआरपीएफ जवान मोहम्मद अनवर को देखकर मन वाह-वाह करने के लिए विवश हो उठता है। दो-दो बार हार्टअटैक का जानलेवा झटका झेलने के बाद भी अनवर को विकलागों की सेवा का जुनून सवार है। आफिस में आने वाले विकलागों का हाथ पकड कर टेम्पों से ही नहीं उतारते वरन् उन्हें अपने पीठ पर उठा कर आफिस में उस टेबुल तक ले लाते हैं, जहां उनका काम होता हैं। उनके इस कार्य के लिए रेलवे व डीआरएम ने सम्मानित भी किया है। इन दिनों प्रत्येक आने वाले कर्मचारियों का कोरोना थर्मल जांच भी पूरी मुस्तैदी से करते दिख जायेंगे।


गाजीपुर के गरीब किसान परिवार में जन्में मोहम्मद अनवर काफी गरीबीं में अपना जीवन व्यतीत किया। अपने माता-पिता को खो चुके अनवर आज रेलवे में आरपीएफ की नौकरी कर रहे हैं। मडुवाडीह में अपने दो बच्चों व पत्नी के साथ रह रहे अनवर को वैसे बचपन से ही समाज सेवा की ललक थी लेकिन बातचीत के दौरान मोहम्मद अनवर ने बताया कि विगत 4 वर्ष पूर्व उन्हें दो-दो बार हार्टअटैक का दौरा पडा। उसके बाद लगा कि सबकुछ समाप्त हो गया है और यह जीवन अब मेरा नहीं है बल्कि इस शरीर से जीतना हो सके सेवा की जाए। गरीब, लाचार, विकलांगों को देखते ही मन द्रवित हो उठता और जो बन पडता है उसे करने की कोशिश करता हूं लेकिन इस बीच जब मेरी पोस्टिंग पूर्वोतर रेलवे प्रवेश द्धार पर लगा दी गयी तो लगा शायद ऊपर वालें ने हमें लोंगो की सेवा के लिए यहंा लगाया है। दूर दराज से आने वाले विकलांग रेलकर्मी अपने काम के लिए बराबर आते रहते हैं, लेकिन टेम्पों आदि वाहनों को गेट पर ही रोक देने से उन्हें काफी परेशानी उठानी पडती हैं। कई तो चल भी नहीं पाते हैं, उन्हें टैम्पों से ही उतार कर अपने पीठ पर लाद कर उनके काम के टेबुल तक ले जाता हूं। इस दौरान उनके फार्म भरवाने के साथ उनके अन्य कामों में मदद के साथ उन्हंे पानी भी पिला कर फिर उन्हें उठा कर टेम्पों में बैठा कर विदा भी कराता हूं। ऐसा करने से हमें बहुत ही सुकुन मिलता है। जबकि भारी सामान उठाने के लिए डाक्टरों ने मना कर रखा है लेकिन जब उन्हें देखता हूं तो मन विचलित हो उठता है और कदम स्वंय उनकी तरफ आगे बढ जाता है।


जात-पात, ऊंच-नीच के प्रति मोहम्मद अनवर का कहना है कि लोंगो को अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है। कोई गलत नहीं है, किसी को गलत-सही हमारी सोच बनाती है। हिन्दू-मुस्लिम के बीच खीच रही दीवारों से वह काफी आहत दिखे, इन दीवारों के लिए सियासत व राजनीति को जिम्मेदार मानते हैं। जिसके चलते हम एक दुसरे के दुश्मन बने बैठे हैं अन्यथा हम सब भाई-भाई हैं। हमें अपने अन्दर की दुरियों को मिटाकर एक अखण्ड भारत के लिए एकजूट होना चाहिए। जिससे सभी का कल्याण हो सके।

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