विजय श्रीवास्तव
-वैश्विक चुनौतियों के चलते विश्व में तमाम भाषाएं तथा संस्कृतियाँ हो रही हैं लुप्त
– कहा तिब्बती छात्र अध्ययन तिब्बती संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य के लिए कर रहे हैं
-केन्द्रीय तिब्बती विश्वविद्यालय परिवार को किया सम्बोधित
वाराणसी। केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रमुख (सिक्योंग) डॉ लोबसंग सांग्ये ने कहा कि वर्तमान वैश्विक चुनौतियों के चलते विश्व में तमाम भाषाएं तथा संस्कृतियाँ लुप्त होती जा रही हैं। ऐसे समय में हमें अपनी मातृभूमि से विस्थापित होते हुए भी अपनी भाषा तथा संस्कृति को संरक्षित रखना परम पावन दलाई लामा जी की दूरदृष्टि तथा उनके योजनाबद्ध तरीके से कार्यकरने के कारण ही सम्भव हुआ है, जिसे आगे जारी रखने की जिम्मेवारी हम सभी की है।
केन्द्रीय तिब्बती विश्वविद्यालय परिवार के सदस्यों (छात्रों, शिक्षकों, कर्मचारियों तथा आमंत्रित अतिथियों) को सम्बोधित करते हुए डॉ लोबसंग सांग्ये ने कहा कि अन्य संस्थानों के छात्रों तथा केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय सारनाथ के छात्रों में मूल अन्तर यह है कि अन्य संस्थानों के छात्र अपना कैरियर बनाने के लिए अध्ययन करते हैं जबकि आपका है। वर्ष 1959 में तिब्बत से निर्वासित 25 वर्षीय परम पावन दलाई लामा जी ने पांच बिन्दुओं पर योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया, जिसमें पहला और दूसरा कार्य नालन्दा की बौद्ध परम्परा की हिमालयी क्षेत्र सहित पूरे भारत में पुर्स्थापना करना, तीसरी योजना पश्चिमी देशों में नालन्दा की बौद्ध परम्परा की स्थापना करना, चैथी योजना तिब्बत में नालन्दा की बौद्ध परम्परा की पुनर्स्थापना तथा पाँचवीं योजना चीन में नालन्दा की बौद्ध परम्पराकी स्वीकार्यता बढ़ाना रही है। वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि परम पावन दलाई लामा जी बौद्ध संस्कृति के संरक्षण तथा संवर्धन के अपने प्रयासों में पूर्णतः सफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन के तिब्बत पर अधिग्रहण के बाद वर्ष 1962 तक तिब्बत के 98 प्रतिशत बौद्ध मठ पूर्णतः नष्ट किए जा चुके थे, किन्तु आज उनमें से सभी प्रमुख बौद्ध मठों की पुर्नस्थापना भारत में हो चुकी है तथा वह सभी तिब्बती संस्कृति के संरक्षण तथा संवर्धन के क्षेत्र में पूर्णतः क्रियाशील है जो हमारी संतोष का विषय है। किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह सारी उपलब्धियाँ हमारी पुरानी पीढ़ी, जिन्होंने तिब्बत की दुर्दशा का अनुभव किया था, उनके प्रयासों का परिणाम है। हमारे युवाओं को उनके संघर्षों तथा वेदना का स्मरण रखते हुए अपनी भाषा, धर्म तथा संस्कृति के संरक्षण संवर्धन हेतु सतत प्रयासरत रहना होगा। भारतवासियों को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि जब देश में बौद्ध धर्म के प्रमुख केन्द्र नालन्दा, विक्रमशिला, तक्षशिला आदि सक्रिय थे उस समय भारत विश्वगुरु की भूमिका में था। इन संस्थानों का पराभाव भी इस महान देश के पिछड़ने के प्रमुख कारणों में एक है, हम सभी को अपने स्वर्णिम अतीत पर विचार कर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गेशे नवांग समतेन जी ने तथा समस्त विभागाध्यक्षों ने, माननीय डॉ लोबसंग सांग्ये का खदक् प्रदान कर स्वागत किया । प्रो. गेशे नवांग समतेन जी ने डॉ लोबसंग सांग्ये जी कोविश्वविद्यालय की प्रमुख उपलब्धियों और आगामी योजनाओं से अवगत कराया तथा उन्हें विश्वविद्यालय से प्रकाशित चयनित ग्रंथ भेंट स्वरुप प्रदान किए। इस अवसर पर माननीय डॉ लोबसंग सांग्ये ने विश्वविद्यालय द्वारा शैक्षणिक सत्र 2017-18 से प्रारम्भ किए जा रहे तिब्बती भाषा एवं साहित्य तथा तिब्बती इतिहास के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों का शुभारम्भ किया।
गौरतलब है कि केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रमुख (सिक्योंग) माननीय डॉ लोबसंग सांग्ये अपने दो दिन के प्रवास पर कल 13 जुलाई को सायं काल 6 बजे केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय सारनाथ पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय के शांतरक्षित ग्रंथालय सहित अन्य विभागों का अवलोकन किया था। कार्यक्रम का संचालन प्रो. लोबसंग तेनजिन जी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन विश्विवद्यालय के कुलसचिव डॉ रणशील उपाध्याय ने किया