पं. प्रसाद दीक्षित
कर्मकाण्डी व ज्योतिषाचार्य
न्यासी काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी
-चित्रा नक्षत्र व रवि योग का संयोग
-शिव परिवार के पूजन का सर्वश्रेष्ठ समय सायं 6.38 बजे तक
वाराणसी। महिलाएं अपने अंखड सुहाग के लिए तीज का व्रत रखती है। हैं। कुंवारी कन्याओं के लिए भी ये व्रत बड़ा खास माना जाता है। कहा जाता है कुंवारी कन्याएं यह व्रत करें तो उन्हें भगवान शिव जैसा पति मिलता है। भाद्र शुक्ल तृतीया तिथि सनातनियों के अतिमहत्वपूर्ण है। यह तिथि हरतालिका तीज के रूप में पूजनीय एवं वंदनीय है। तीज यानी वो दिन जब भूखी-प्यासी सुहागिनें शिव परिवार से अपने अखंड सुहाग संग सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगती हैं।
इस बाबत प्रख्यात कर्मकांडी पं. प्रसाद दीक्षित ने बताया कि इस बार चित्रा नक्षत्र और रवि योग के अद्भुत संयोग में हरितालिका तीज 12 सितम्बर को मनायी जाएगी। भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 11 सितम्बर को रात्रि 7.33 से प्रारम्भ होगी जो 12 सितम्बर को रात्रि 6.38 तक रहेगी। वहीं, चित्रा नक्षत्र 12 सितम्बर को सूर्योदय से पूर्व से लेकर 12.13 की भोर 4.45 तक रहेगा। इसके साथ ही रवि योग भी 12.13 की भोर 4.45 रहेगा। हरितालिका तीज पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ समय बुधवार को रात्रि 6.38 तक है। हांलाकि जो सौभाग्यवती स्त्रियां इस समयावधि में पूजन नहीं कर पाएंगी वे इसके बाद भी पूजन कर सकती हैं।
कठिन व्रत की पारणा अगले दिन सोलह श्रृंगार कर सुहागिनें जिस त्याग-तपस्या और निष्ठा के साथ यह व्रत रखती हैं वह बहुत ही कठिन है। इसमें फलाहार सेवन की बात तो दूर, जल तक ग्रहण नहीं करती हैं। व्रत के दूसरे दिन प्रातः काल स्नान इत्यादि के पश्चात व्रतपरायण स्त्रियां सौभाग्य द्रव्य एवं वायन छूकर ब्राह्मणों को देनी चाहिए। इसके बाद ही जल आदि ग्रहण कर व्रत का पारण करें। इस व्रत में मुख्य रूप से शिव-पार्वती संग गणेश जी का पूजन किया जाता है। माता पार्वती पर सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है।
पार्वती की कथा का श्रवण रू इस व्रत को सर्वप्रथम गिरिजानंदिनी उमा ने किया था, जिसके फलस्वरु प उन्हें भगवान शिव पति रूप में प्राप्त हुए थे। इस व्रत के दिन स्त्रियां वही कथा सुनती हैं जो पार्वती जी के जीवन में घटित हुई थी। उसमें पार्वती के त्याग, संयम, धैर्य तथा एकनिष्ठ पतिव्रत धर्म पर प्रकाश डाला गया है, जिससे सुननेवाली स्त्रियों का मनोबल ऊंचा होता है। देवी पार्वती ने भाद्र शुक्ल तृतीया तिथि हस्त नक्षत्र में आराधना की थीं, इसीलिए इस तिथि को यह व्रत किया जाता है और तभी से भाद्रपद शुक्ल तीज को स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए तथा कुंवारी कन्याएं मनवांछित वर की प्राप्ति के लिए हरितालिका तीज का व्रत करतीं रही हैं। सखियों के द्वारा हरि गई व्युत्पत्ति के अनुसार व्रत का नाम हरितालिका हुआ।