
विजय श्रीवास्तव
-नितिन गणकरी व अमित शाह की अदावत बहुत पुरानी है
-आरएसएस के चहेतों में से एक है गणकरी
वाराणसी। भाजपा के वरिष्ठ नेता व मंत्री नितिन गणकरी व गृह मंत्री अमित शाह की अदावत की अगर बात की जाए तो वह बहुत पुरानी है। यह अदावत वर्ष उस समय से शुरू हुई जब 2009-10-11 में नितिन गणकरी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बने। गणकरी के अध्यक्ष बनने से जहां सुषमा स्वराज, आर एस एस, लाल कृष्ण आडवानी, राजनाथ सिंह सिन्धिया खेमा में जहां खुशिया मनायी गयी वहीं नरेन्द्र मोदी व अमित शाह खेमे में मायूसी दिखी। मीडिया रिपोर्ट की बात माने तो यह बात सामने आती रही कि गणकरी से अमित शाह को मिलने के लिए घंटों इंतजार करना पडता था। इसके साथ ही शोहराबुददीन केस में अमित शाह को जेल व मंत्री पद से इस्तीफा देने के मामले में भी नितिन गणकरी का रूख अमित शाह के फेवर में कभी नहीं रहा। यहां तक की अमित शाह को गुजरात छोड कर दिल्ली में रहना पड रहा था।

यह वह दौर था जब मोदी गुजरात के एकलौते भाजपा के मुख्यमंत्री हुआ करते थे लेकिन गणकरी के राष्टीय अध्यक्ष बनने के बाद जहां सभी वरिष्ठ भाजपाई उन्हे बधाई देने दिल्ली आए थे वहीं रिपोर्ट के मुताबिक मोदी शुभकामना देने दिल्ली नहीं पहुंचे वेसे रिपोर्टे यहां तक कहती है कि उन्हें गणकरी से मिलने का समय ही नहीं मिला। लेकिन हम इन सब बातो से अलग बात करेंगे जिसके कारण यह अदावत ने इतना तूल पकडा कि जिसका रिजल्ट 10-12 साल देखने को मिला। इस अदावत का सबसे बडा कारण यह था कि आरएसएस का अगर सबसे चहेता कोई था तो वह नितिन गणकरी हुआ करते थे।

जानकारी के मुताबिक जब उस समय पार्टी अध्यक्ष के चुनाव का समय आता उससे पहले ही पार्टी ने अपना संविधान बदल कर किसी व्यक्ति को दो बार के कार्यकाल तक के लिए अध्यक्ष बने रहने पर मुहर लगा दी। लेकिन जबतक पार्टी के राष्टीय अध्यक्ष का चुनाव होता तब तक एक विस्फोटक घटना 2013 में घटी जिसमें एक बडा घोटाला हुआ जिसने दूसरी बार लगभग नाम तय होने के बावजूद नितिन गणकरी के नाम को साइड में कर उनके स्थान पर राजनाथ सिंह का नाम आगे कर दिया गया और उन्हें दरकिनार कर राजनाथ सिंह को राष्टीय अध्यक्ष बनाया गया। वैसे देश की राजनीति का नब्ज बाखूबी से समझने वाले राजनीति विशेषयज्ञ मानते है कि अगर दूसरी बात नितिन गणकरी राष्टीय अध्यक्ष बनते थे वह 2014 में होने वाले चुनाव में प्रधानमंत्री का चेहरा बन सकते थे।
जानकार बताते है कि इसके पीछे कुछ लोंगो की चाल थी जिसके शिकार नितिन गणकरी बनते चले गये और कुर्सी जाने के साथ उनपर घोटाला का भी आरोप लगा। इसी बीच 8 जून 2013 में गोवा भाजपा की कार्यकारणी बैठक ने यह बगावत और तेज कर दी थी। यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि लाल कृष्ण आडवानी भी पीएम के रेस में शामिल रहे लेकिन गोवा के उस अधिवेशन में जब पीएम पद के नरेन्द्र मोदी के नाम की चर्चे ने जोर पकडना शुरू कर दिया तो आडवानी सहित गणकरी की नाराजगी बढ गयी। पार्टी ने आडवानी व गणकरी के नाराजगी को दरकिनार करतेहुए नरेन्द्र मोदी के पीएम पद के उम्मीदवार पर मुहर लगा दी यहां यह बात भी मार्के की है कि राजनाथ सिंह जो स्ंवय गणकरी के 2009 में पार्टी के राष्टीय अध्यक्ष चुने जाने पर प्रसन्न थे। वही राजनाथ सिंह ने नरेन्द्र मोदी के पीएम के नाम की वकालत कर गणकरी सहित आडवानी को हैरत में डाल दिया। यू कहा जाए कि यहीं से गणकरी के खराब दिन की शुरूआत हो गयी जो अभी तक जारी है। उस समय एक ओर जहां गणकरी मन में पीएम का सपना पाले थे वहीं आडवानी भी पीएम पद का सपना देख रहे थे। लेकिन वैसे गणकरी ने उस समय कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दी लेकिन आडवानी की नाराजगी खुलकर देखने को मिली। उनकी नाराजगी इतना अधिक थी कि गोवा के अधिवेशन में वे नहीं गये। वैसे उनके इस बगावत व नाराजगी का खामियाजा आडवानी को चुनाव के बाद भुगतना पडा। इतना ही नहीं उनके खेमें में रहने वाले मुरली मनोहर जोशी सहित अन्य का भी वहीं हश्र हुआ और सबको पार्टी ने हासिए पर ला दिया।
एक बार फिर जब 2014 में जब महाराष्ट विधानसभा का चुनाव हुआ तो गणकरी की महात्वाकाक्षां एक बार फिर हिलोरे मारने लगी थी और वह महाराष्ट का सीएम बनाना चाहते थे लेकिन पार्टी ने उस समय उनके मंसूबे को दरकिनार कर देवेंन्द्र फडनवीस को सीएम चुन लिया। हॉ इससे पहले अमित शाह ने भी राजनाथ सिंह को साइड कर स्वंय भाजपा का राष्टीय अध्यक्ष बन चुके थे। जिससे गणकरी को एक बार फिर जोरदार झटका लगा। जिस देवेन्द्र फडनवीस को उन्होंने राजनीति का कखग सिखाया उसका कद अमित शाह ने महाराष्ट में उचां कर उन्हें और हासिए पर ढकेल दिया लेकिन इस बार इसे राजनीति में इन्तहा ही कहा जायेगा कि उन्हें संसदीय बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखा कर देवेन्द्र फडनवीस को बोर्ड में प्रवेश दे दिया गया।
वैसे इस अदावत के पीछे तत्कालिक कारण में मोदी जी का अमृत महोत्सव में तीन दिवसीय झंडा फहराने का कार्यक्रम भी रहा। इस कार्यक्रम में मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आरएसएस ने जहां खुल कर साथ नहीं दिया वहीं गणकरी भी इस मिशन में खुल कर आगे नहीं आए। बहरहाल इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि भाजपा में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
राजनीतिक गलियारों में यह बात आम हो चली है कि अमित शाह व मोदी की डबल इंजन सरकार नितिन गणकरी को हासिए पर लाने के लिए ही उन्हें संसदीय बोर्ड कमेटी से बाहर का रास्ता दिखाया लेकिन वहीं राजनीतिक विशेषज्ञ यह भी मानते है कि गणकरी का काम करने की शैली और उनका बेवाह बातचीत का ढंग उन्हें एक अलग पिंक्त में खडा करता है। राजनीति विशेषज्ञों के साथ भाजपा के विरोधी भी काफी हद तक मोदी मंत्री मंत्रीमंडल में सबसे अधिक काम करने वाला मंत्री के रूप में गणकरी का ही नाम लेते हैं। निश्चय ही इन आठ सालों में एक्सप्रेस हाइवे, रिंग रोड, पुल सडकों का निर्माण बहुत हुआ है जिसे मोदी अपने भाषणों में अपने शासन काल की उपलब्ध्यिं में गिनाना नहीं भूलते है और इन आठ सालों में मोदी हो या अमित शाह उनके शैली, नीतियों व वादों पर लोंगो का जहां विश्वास घटा है वहीं गणकरी अपने कार्यशैली से बिना किसी लाग लपेट से अपना कद बढाने में सफल रहें हैं। जिससे भाजपा के गलियारों में कही धीमी ही सही गणकरी के पीएम के चेहरे पर चर्चा हो रही है।