
विजय श्रीवास्तव
-यूपी में 21 प्रतिशत दलित वोटर
-जयन्त चौधरी के माध्यम से 12 प्रतिशत जाटव वोट बैंक को साधने की कोशिश
लखनऊ। Akhilesh Yadav-Mayawati : लोकसभा चुनाव 2024 का आगाज हो चुका है। भाजपा सहित अन्य विपक्षी पार्टिया अब तैयारी में पूरी तरह से जुट भी गयी है। ऐसे में अगर यूपी के सियासत की बात करें तो दूसरी पारी खेल रहे योगी आदित्यनाथ की सरकार पूरे दमखम के साथ तैयारी कर रही है। विकास कार्यो को लेकर लगातार सीएम योगी दौरे पर है। जबकि वहीं दूसरी ओर विपक्षी पार्टियों की बात की जाए तो मैनपुरी व खतौली उपचुनाव जीतने के बाद समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का हौसला इस समय बुलन्द है।
यादव वोटर बैंक पर अखिलेश की पकड़ मजबूत-
यादव वोटर बैंक पर अपनी मजबूत पकड़ के बाद अब उनका निशाना यूपी के दलित वोट बैंक पर है। वह जानते है कि केवल यादव वोट के जरिए यूपी की सत्ता हासिल नहीं किया जा सकता ऐसे में अब उनका निशाना सीधे मायावती के दलित वोटर बैंक पर है। जाटव वोटरों को साधने के बाद अब वह पूरी तरह से दलित वोटरों के साधने की रणनीति बनाने में जुट गये है और इसके लिए उन्होंने अपना एक नया सेनापति भी चुन लिया है। जिसका उपयोग उन्होंने उपचुनाव में कर सफलता भी प्राप्त की। जिसके बारें में हम आपको आगे विस्तार से बतायेगें कि आखिर क्यों दलित वाटरों को साधने की अखिलेश यादव को जरूरत पड गयी।

दिल्ली की कुर्सी का रास्ता यूपी से होकर ही जाता है-
अखिलेश यादव यह जानते है कि केन्द्र का रास्ता यूपी से ही होकर जाता है। वैसे जहां तक अखिलेश यादव के लिए दिल्ली की बात की जाए तो वह अभी काफी दूर है। लेकिन वह इतना जरूर चाहते हैं कि जो भी केन्द्र में सरकार बने उसमें उनकी बडी भूमिका हो ओैर उस सरकार का रिमोट कन्ट्रोल उनके हाथ में हो। आज अखिलेश यादव इस मिशन के लिए पूरी तरह से जुट गये है।
कार्यकर्ताओं का हौसला बुलंद करने में लगे हैं अखिलेश यादव-
अखिलेश यादव आजकल अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने का कोई भी मौका नहीं छोडना चाहते है। जिसका जीता जागता नमूना आठ जनवरी को सपा के सोशल मीडिया कोआर्डिनेटर मनीष जगन अग्रवाल के गिरफ्तारी पर इतने नाराज हो गये कि सीधे लाव लश्कर के साथ पुलिस मुख्यालय तक पहुंच गये और वहां जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के न होने पर उपस्थित अन्य अधिकारियों को जमकर खरी खोटी भी सुनाई ओैर 24 घंटे में अपने कोआर्डिनेटर को छुडवाकर उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को इस बात एहसास करने में कामयाब रहे कि उनका नेता अपने पत्नी डिपंल यादव को मैनपुरी चुनाव में जीता सकता है तो वहीं उनके किसी भी कार्यकता के लिए हर स्तर पर लड सकता है।
जाटव वोट बैंक के बाद अब दलितों पर निशाना-
जहां तक यूपी की राजनीति की बात की जाए तो यहा जातिगत फैक्टर बहुत माने रखता है और उसमें दलित वोटर बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हें। इसमें जाटव वोटर भी काफी माने रखते हैं। मायावती की पार्टी बसपा ने दलित व जाटव फैक्टर पर अपनी पकड बनाने के चलते ही यूपी में राज करने में कामयाब रही। जिसपर अब अखिलेश यादव भी अब पूरी तरह से चल रहे हैं। इसी कडी में उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में जाटव वोट बैंक को साधने के लिए जयन्त चौधरी की पार्टी के साथ गठबंधन किया। इसका लाभ उन्हें विधानसभा चुनाव व अभी हाल में हुए उपचुनाव में भी देखने को मिला। अखिलेश यादव का अब निशाना दलित वोटर बैंक पर है लेकिन पार्टी में कोई विशेष दलित नेता न होने के वजह से उन्हें अपने इस मिशन में को पूरा करने में परेशानी हो रही है।
दलित वोटर साधने के लिए नया सेनापति का चुनाव-
अखिलेश यादव ने अब दलित वोटरों को साधने के लिए एक नया सेनापति आर्मी प्रमुख चन्द्रशेखर आजाद को चुन लिया है। जिसका टेलर उन्होंने उपचुनाव में देखा और उसमें सफलता भी मिली। अब अलिखेश यादव चन्द्रशेखर को साधकर इससे दो निशाने साधना चाहते हैं। एक तो मायावती के गढ को हिलाकर उनके अन्दर डर पैदा कर उन्हें सपा गठबंधन के लिए तैयार करना वहीं दूसरा दलित वोट बैंक को पूरी तरह से अपने फेवर में करना।
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यूपी में 17 रिजर्व सीट के साथ 21 प्रतिशत दलित वोटर-
यूपी विधानसभा सीटों की बात अगर की जाए तो दलितों के लिए 17 सीट रिजर्व है। जो कि काफी मायने रखती है। वैसे यह तो रहा सीटों का मामला लेकिन अगर वैसे पूरे प्रदेश की बात की जाए तो 21 प्रतिशत दलित वोटर है। उसके बाद ओबीसी वोटर यूपी के चुनाव को पूरी तरह से प्रभावित करते हैं। यूपी के 49 जिले ऐसे है जो दलित बाहुल्यसंख्या वाले माने जाते है। जिसमें 42 जिले ऐसे है जिसमें 21 प्रतिशत से अधिक संख्या में दलित वोटर है। दलित वोटरों में 12 फीसदी जाटव वोटर है। ऐसे में यह आसानी से समझा जा सकता है कि क्यों हर पार्टी इन दलित वाटरों को लुभाने में लगी रहती है। प्रदेश के यह 42 जिले ऐसे है जिस पर किंग मेकर की भूमिका में यह दलित वोटर ही होते है। यह जिले सोनभ्रद, कोशाम्बी, सीतापुर, हरदोई, उन्नाव, जालौन, रायबरेल, झासी, औरेया, बहराइच, चित्रकूट, महोबा, मिर्जापुर, आजमगढ, लखीमपुरी खीरी, हाथरस, फतेहपुर, ललितपुर, कानपुर देहात, अम्बेडकर नगर, बिजनौर है। इन जिलों की अगर बात की जाए तो इसमें दलित वोटरों की संख्या 25 से 41 प्रतिशत तक हैं जो कि पूरी तरह से इन जिलों के विधानसभा व लोकसभा सीटों को प्रभावित करते रहे हैं। इनके साथ ही आगरा, गौतमबुद्ध नगर, मुज्जफरपुर, सहारनपुर, मेरठ, गाजियाबाद, अमरोहा, बरेली, मुरादाबाद, बागपत ऐसे जिले है जहां दलित वोटर का प्रतिशत 14 से लेकर 24 प्रतिशत तक है। यह भी काफी हद तक इन जिलों को प्रभावित रखने की हैसियत रखते हैं।
चन्द्रशेखर आजाद से साधेंगे मायावती वाटरों को-
अब यूपी के दलित वोटरों पर अपनी मजबूत पकड बनाने के लिए अखिलेश यादव ने अपनी रणनीति को बदलते हुए अपना नया सेनापति भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर आजाद को चुना है। जिसके जरिए वह मायावती के गढ को हिलाना चाहते है। अखिलेश यादव यह जानते हैं कि आज दलितों की मसीहा बनी मायावती को चन्द्रशेखर आजाद सीधा टक्कर दे रहा है। उसकी सभाओं में अब उमडती भीड ने बसपा सुप्रीमों को भी परेशानी में डाल दिया है। ऐसे में अखिलेश यादव ने चन्द्रशेखर आजाद के रूप में दलित वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए अपना ट्रंप कार्ड खेला है। अभी हाल में चन्द्रशेखर आजाद और अखिलेश यादव की मुलाकात भी प्रदेश की राजधानी में हुई। इसके साथ ही चन्द्रशेखर आजाद खतौली व रामपुर उपचुनाव में सपा के समर्थन में प्रचार करते भी दिखे।
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जयन्त चौधरी को साध कर 12 प्रतिशत जाटव वोटर बैंक को साधने की कोशिश–
जयन्त चौधरी को अपने गठबंधन का हिस्सा बना कर जहां दलितों के 12 प्रतिशत जाटव वोट बैंक पर सेंध लगायी हैं वहीं अब चन्द्रशेखर आजाद के माध्यम से यूपी के 21 प्रतिशत दलित वोट बैंक पर मजबूत पकड बनाने के लिए अपनी प्लानिंग को धार देने में लग गये हैं। जिससे अब आपको आने वाले दो बातें देखने को मिल सकती है। एक तो चन्द्रशेखर आजाद सपा के साथ पूरी तरह से खडें होकर दलित वोटरों को समाजवादी गठबंधन की तरफ मोडते दिखें वहीं दूसरा इसके एवज में आगामी 2024 लोकसभा चुनाव में सपा के बेशाखी का सहारा लेकर चन्द्रशेखर आजाद लोकसभा चुनाव में ताल ठोकते नजर आए।