
पुस्तक चर्चा
डॉ आलोक कुमार
विगत दिनों एक पुस्तक जिसका शीर्षक ‘‘श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से धाम तक तीन कानून’’ इसके लेखक पूर्व मंत्री और सामाजिक कार्यकर्ता शतरूद्र प्रकाश हैं। इस पुस्तक में काशी विश्वनाथ धाम के पहले तो मंदिर फिर उसके बाद धाम तक की यात्रा जो है जिसे भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने प्रयास और एक तरह से कहें तो भगीरथ प्रयास का स्वप्न साकार करने में पूरे धर्म का निर्वाह किया और अब यह देश ही नहीं दुनिया के लोगों के आकर्षण का कारण बन गया है।

काशी विश्वनाथ धाम में जहां प्रतिदिन लगभग एक लाख से सवा लाख लोग आते हैं और विशेष दिनों में कोई त्यौहार पड़ता है तो करीब करीब 3 से 5 लाख लोंगो का आगमन होता है। लोगों के आगमन से बनारस का व्यापार खास करके होटल उद्योग, ट्रांसपोर्ट और खाने-पीने का, साड़ियों का जो बनारस जिस के लिए मशहूर था, उनके लिए एक तरह से पुनरूद्धार की स्थिति हो गई है। अगर आप देखे तो इसका उदाहरण वेबसाइटों पर नजर डालें तो बहुत कम होटल हैं जहां जगह दिखाई पड़ती है। तो यह एक अभिनव प्रयोग हुआ। इस प्रयोग की शुरुआत मंदिर पर एलामीपेंट लगाने के विरोध से शुरू हुआ। फिर विश्वनाथ मंदिर गर्भगृह से जब सोने की चोरी व उसकी बरामदगी हुई। सरकार के तमाम तरह के प्रतिबन्ध व प्रयोगों के प्रतिरोध में लगातार लगभग तीन दशकों के संघर्ष का इस किताब में पूरा लेखा-जोखा है और बहुत सारी ऐसी जानकारियां हैं जिनको खोजना वर्तमान समय में दुरूह कार्य है।

जहां तक मैं समझता हूं और आप भी इससे सहमत होंगे कि इस तरह का संकलन एक ऐसा डॉक्यूमेंट है जो आज-कल बहुत ही दुर्लभ हो गया है। इस समय जब लोग लिखते हैं कहानी, कथा, गल्प लेकिन डॉक्यूमेंट जैसी कोई चीज हो नहीं पाती है। डॉक्यूमेंट करना जिसका मतलब कि उसमें बहुत सारा प्रयास, रिसर्च, एक साधना करनी पडती है। जो बहुत ही मुश्किल होता है। शब्दों के माध्यम से घटनाओं को यथावत रखना मुश्किल काम है और इस पुस्तक में जहां जो घटनाएं हैं उस घटना को क्रोनोलॉजिकल ऑर्डर में मतलब कालक्रम में रखा गया है, तथा उसके सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व धर्म की भी रक्षा की गई है कि वह कहीं कम न हो। यह एक बड़ा अभिनव कार्य हुआ है। इस कार्य को तरह-तरह से लोगों ने देखा। किसी ने पर्यटन की दृष्टि से देखा किसी ने इसको राजनीतिक चश्मे से देखा पर इसके आस्था का प्रश्न और इसके सामाजिकता का जो महत्वपूर्ण आधार है, उसको समझ पाने में अभी लोंगो की रूचि थोड़ी कम ही थी या इस पर अभी चर्चा कम हुई।

यह पुस्तक इस मामले में अन्य लोगों से अलग है और अभी तक ऐसा कोई होलिस्टिक मतलब संपूर्ण पक्षों को संपूर्ण तथ्यों और शक्तियों को इकट्ठा करना अभी तक नहीं हुआ है। यह पुस्तक लगभग 100 पृष्ठों के आसपास की है और इसमें कुछ दुर्लभ चित्र हैं कुछ ऐसे ऐसे डॉक्यूमेंट हैं शायद जो मिलना अब मुश्किल होंगे। यह पठनीय है। इसको पढ़ने के बाद निश्चित है कि जो विश्वनाथ मंदिर को लेकर के लोगों के मन में जिज्ञासा है वह कहीं न कहीं और बढ़ेगी और काशी जाकर के मंदिर साक्षात देखने की लालसा उनकी और बढ़ती हुई दिखाई देगी। जो अपने आप में महत्वपूर्ण बात है।
पुस्तक में लेखक ने कहीं चर्चा की है कि यहां जिन लोगों का योगदान रहा है उनकी मूर्तियां यहां पर स्थापित हैं। यहां एक वृद्ध आश्रय भी बनाया गया। दर्शनार्थियों को प्रातः कालीन जो सुबह बनारस का सुख भी मिलता है वहीं सवेरे सूर्यनारायण के दर्शन होते हैं। मंदिर के जो पूर्व में दरवाजा है। यहां चारों तरफ दरवाजे बनाए गए हैं, प्रांगण काफी विशाल है और रम्य है, मनोरम है, और सुखकारक है। यह सब कुछ लेखक ने बहुत ही सलीके से जोड़ने का व संकलन का प्रयास किया है। ऐसा लगता है कि लेखन किसी मजे हुए लेखक का है। इसका बेहतरीन संकलन किया गया है। तो अब यह पुस्तक आप लोगों के सम्मुख है, आप इसे देखेंगे और पढेंगे तो निश्चय ही आपको बहुत ही सुखद अनुभुति होगी।