
आर वर्मा
एडिटर, राजनीतिक डेस्क
-अधिकतर चैनलों ने टीएमसी को दिखाया है आगे
-कांग्रेस-लेफ्ट हो सकते है ममता के लिए सहयोगी
-किसी को स्पष्ट बहुमत न मिलने की दशा में खरीद-फरोद होंगे तेज
वाराणसी। पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव अब सम्पन्न हो चुके है। 2 मई को परिणाम भी आ जायेंगे। चुनाव का एग्जिट पोल भी जारी हो चुके है लेकिन कुछ को छोड कर अधिकतर ने भी बंगाल में किसकी बनेगी की सरकार का दावा नहीं किया है। अधिकतर चैनलों का एक्जिट पोल की बात की जाए तो भाजपा को जहां 110 से 160 तक दिखाया है वहीं ममता बनर्जी को 120 से 170 तक दिखाया है। जबकि कांग्रेस व लेफ्ट को 5 से 20 तक दिखाया है। वैसे बंगाल में होने वाले चुनाव में भाजपा को जबरदस्त सफलता मिलनी तय है लेकिन वह उसे सीएम की कुर्सी तक पहुंचा पायेगी। इसमें संशय है। ममता बनर्जी इस चुनाव में अपनी राजनीतिक जमीन खोती नजर आ रही है लेकिन उनका आक्रामक रवैया और भाजपा के एक से एक धुरन्धर नेताओं के समक्ष जिस तरह से डट कर सामना किया वह संभव है उन्हें बंगाल में एक बार उन्हें फिर से सरकार बनाने का मौका दे दें।
ममता के खेला होबे के नारें के इर्दगिर्द घूमता रहा चुनाव
बंगाल का यह चुनाव कई बातों के लिए इस बार यादगार रहेगा। अभी तक किसी राज्य में भाजपा की इतनी बडी फौज नहीं उतरी थी। पीएम से लेकर गृहमंत्री, रक्षामंत्री, आधा दर्जन सीएम सहित दर्जनों की संख्या मेें केन्द्रीय मंत्री की टीम व फिल्म जगत की हस्ती को इस बार भाजपा ने ममता बनर्जी के खिलाफ उतार दिया था। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि सभी वफादार सेनापतियों के दगा देने के वावजूद ममता बनर्जी ने जिस ढंग से पूरे चुनाव में भाजपा के आक्रामक सेना का सामना किया वह ममता के बस की बात थी। खेला होबे का नारा ममता बनर्जी का पूरे चुनाव में गुजता रहा, भाजपा के अन्य नारें भी ममता के खेला होबे के नारें के सामने फिका ही नजर आए। वैसे पीएम मोदी ने इसके तर्ज पर विकास होबे का नारा दिया लेकिन वह चुनाव में ही गुम हो गया। चुनाव के बाद भी आज के तारिख में भी ममता का खेला होबे नारा की गूंज सुनाई पड रही हेैं।
अधिकतर एक्जिट पोल ने दिखायी है भाजपा व टीएमसी में टक्कर
आज इस बात से इन्कार नहीं किया सकता है कि अधिकतर चैनल किसी न किसी पार्टी से सहानुभूति रखते हैं। जो विधानसभा चुनावों के एक्जिट पोल में साफ दिखती है। कुछ अति सहानुभूति वाले चैनल तो भाजपा को बहुमत तक पहुचाने में गुरेज नहीं की है। बहरहाल यह शुरू से ही अटकले लगाई जा रही थी कि इस बार बंगाल में चुनाव में भाजपा का राजनीतिक कद उछाल मारने वाला है और भाजपा ने इसके लिए सालों से इसकी तैयारी भी कर रखी थी लेकिन अगर कोरोना महामारी अपना यह विंध्वसक चेहरा नहीं दिखाती तो शायद भाजपा के लिए लग रहे किन्तु-परन्तु की बात खत्म हो जाती और बंगाल में भाजपा को अपना परचम लहराने से कोई नहीं रोक सकता था। फिर भी बंगाल में हुए चुनाव में भाजपा को नम्बर दो व प्रमुख विपक्षी पार्टी से कोई नहीं रोक सकता है।
कांग्रेस व लेफ्ट बंगाल में ममता के लिए बन सकते हैं सहयोगी
पश्चिम बंगाल के इस चुनाव में कांग्रेस व लेफ्ट की स्थित सबसे खस्ता दिखी। कांग्रेस ने तो जैसे इस चुनाव में औपचारिता निभाने के लिए अपने प्रत्याशियों को उतारा था। लेफ्ट भी कोई खास असर दिखाने में सफल नहीं हो सका। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि बंगाल में इन दोंनो का वोट बैंक नहीं है। ऐसा भी हो सकता है कि कांग्रेस व लेफ्ट को अगर 10 से 20 सीटें मिल जाती है तो वह बंगाल में सरकार बनाने में रिमोट का काम करें इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। अगर चैनलों व विभिन्न एक्जिट पोल करने वालों को देखा जाए तो एक-दो को छोड कर किसी एक को बहुमत देते नहीं दिख रहे हैं। ऐसे समय में कांग्रेस व लेफ्ट ममता बनर्जी के साथ खडे हो सकते हैं।
जहां तक इस चुनाव में नुकसान की बात की जाए तो इस चुनाव में ममता बनर्जी भले ही बंगाल में हैट्रिक लगाने में किसी तरह से सफल हो जाये लेकिन उनकी बंगाल में राजनीति जमीन पूरी तरह से खिसकती नजर आ रही है। वहीं कांग्रेस व लेफ्ट तो इस पूरे चुनाव में अपने को आक्सीजन देकर जिन्दा दिखाने में लगे थे लेकिन अगर कहीं बंगाल में सरकार बनाने में व सत्ता के साथ बैठने का मौका मिलता है तो महाराष्ट्र की तर्ज पर ही उसे कम से कम शिवसेना की तरह ममता बनर्जी को भी अपने साथ मिलाने का सुनहरा अवसर उसके हाथ लग सकता है, यह उसकी बंगाल में जनाधार खोने के बाद भी उसकी जीत मानी जायेगी। बहरहाल 2 मई को ही साफ होगा कि किसके में है कितना दम और किसका सीएम की कुर्सी पर बैठना है और किसको विपक्ष में।
