दुष्कर्म, भ्रष्टाचार के आरोपी सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा के लिए अनुमति की जरूरत नहीं-हाईकोर्ट

विजय श्रीवास्तव
-बिना सरकार से अनुमति लिए सीधे चल सकता है आपराधिक मुकदमा
-ट्रायल कोर्ट को आपत्ति सुनने का अधिकार

प्रयागराज। अब आपराधिक षड्यंत्र, दुष्कर्म, भष्टाचार के अरोपी सरकारी कर्मचारियों की खैर नहीं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकारी कर्मचारियों पर भष्टाचार, आपराधिक षड्यंत्र, दुष्कर्म, कदाचार, अनुचित लाभ लेने जैसे अपराध का अभियोग चलाने के सरकार से इसकी अनुमति लेना जरूरी नहीं है। इन पर बिना अनुमति लिए मुकदमा चल सकता है। कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 का संरक्षण, लोक सेवक को पदीय दायित्व निभाने के दौरान हुए अपराधों तक ही प्राप्त है।
उक्त फैसला न्यायमूर्ति एस पी केशरवानी तथा न्यायमूर्ति आर एन तिलहरी की खंडपीठ ने बेसिक शिक्षा विभाग आगरा के वित्त एवं लेखाधिकारी कन्हैया लाल सारस्वत की याचिका पर दिया है। जिसमें एक सहायक अध्यापक के खिलाफ शिकायत के बाद जांच जाच बैठाई गई और उसे निलंबित कर दिया गया। तीन माह बाद भी विभागीय जांच पूरी नहीं हुई तो उसने बीएसए को निलंबन भत्ते का भुगतान 75 फीसदी भुगतान करने की अर्जी दी। याची ने आदेश दिलाने के लिए घूस मांगा। अध्यापक ने पचास हजार घूस लेते विजिलेंस टीम से रंगे हाथ पकड़वा दिया । विजिलेंस टीम ने अभियोजन की सरकार से अनुमति मांगी। जिसे अस्वीकार करते हुए सरकार ने सीबीसीआई डी को जांच सौपी। उसने चार्जशीट दाखिल की और कोर्ट ने संज्ञान भी ले लिया। इसके बाद सरकार से अभियोजन की अनुमति भी मिल गई।
इस आदेश को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने याचिका पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दी और कहा कि याची सरकार की अभियोजन की अनुमति आदेश पर विचारण न्यायालय में आपत्ति कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि पद दायित्व निभाने के दौरान हुए अपराध में संरक्षण प्राप्त है कि सरकारी अनुमति से ही अभियोजन चलाया जाए। पदीय कत्तर्व्य से इतर अपराध किया जाता है तो अभियोजन की अनुमति लेना जरूरी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यदि सरकार ने अभियोग चलाने की मंजूरी दे दी है तो ऐसे आदेश के खिलाफ अनुच्छेद 226 के तहत याचिका पोषणीय नहीं है। आरोपी को विचारण न्यायालय में अपनी आपत्ति दाखिल करने का अधिकार है।

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