भूमिका
भारत की धरोहर को संरक्षित रखने वाले पुरातत्व विभाग ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है। कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, जो कि कुतुब मीनार के परिसर में स्थित है, को नवीनीकरण किया जाएगा। इसका लक्ष्य है कि यह ताजमहल की शैली में पुनर्जीवित हो और अन्य वेबसाइटों के मुकाबले उच्च रैंकिंग प्राप्त करे। इस लेख में हम कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के बारे में जानकारी देंगे और नवीनीकरण के बारे में बात करेंगे।
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का नवीनीकरण
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को ताजमहल की शैली में नवीनीकरण किया जा रहा है। यह पहली बार है जब इस मस्जिद के तोरणद्वार को कार्बनिंग तकनीक का इस्तेमाल करके ठीक किया जा रहा है। इसके खराब हुए पत्थरों को निकालकर नए पत्थरों से प्रतिस्थापित किया जा रहा है। साथ ही, इसे लाइटिंग की सुविधा भी दी जा रही है, जिससे यह लोगों को आकर्षित करने में सक्षम होगी।
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के सूरतबदलन की योजना
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के नवीनीकरण के दौरान इसकी सूरत में परिवर्तन होगा। समय के साथ और प्राकृतिक आपदाओं के कारण मस्जिद में दरारें पैदा हो गई हैं, जो अब ठीक की जा रही हैं। इसके साथ ही, इसे लाइटिंग की व्यवस्था भी की जाएगी, जिससे इसका आकर्षक आभा प्रकट होगी। यह सुविधा यात्रियों को दूर से ही आकर्षित करेगी। इसका नवीनीकरण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा किया जा रहा है। एएसआई के अधिकारियों का कहना है कि इस नवीनीकरण को ताजमहल के नवीनीकरण में प्रयुक्त की जाने वाली कार्बनिंग तकनीक के समान शैली में किया जा रहा है। इसकी अभिलाषा है कि यह काम जी-20 शिखर सम्मेलन के आयोजन के एक महीने के भीतर पूरा हो जाएगा।
कार्बनिंग तकनीक: पत्थर को अद्यतन करने का एक प्रमुख विधि
कार्बनिंग तकनीक का परिचय
कार्बनिंग तकनीक एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कार्बन को पत्थर पर लगाया जाता है ताकि उसे अद्यतन किया जा सके। इस तकनीक के अनुसार, पहले कार्बन को एक कागज में उतारा जाता है और फिर उसे पत्थर पर लगाया जाता है। इसके बाद, उस पत्थर को जस का तस बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जब तक कारीगर उस पत्थर पर अपनी छाप छोड़ देता है, तब तक पत्थर को आकार दिया जाता है। इस प्रक्रिया से पुराने पत्थर का आकार और डिजाइन नए जैसे हो जाते हैं।
सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा निर्मित मस्जिद
एक प्रमुख उदाहरण इस तकनीक के प्रयोग का है दिल्ली में स्थित सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा निर्मित मस्जिद। इस मस्जिद का निर्माण सन 1193 से 1197 के बीच हुआ था। इसे कुव्वत-उल-इस्लाम के नाम से भी जाना जाता है और यह प्रसिद्ध मस्जिद है। इस मस्जिद के चारों ओर दालान बने हुए हैं। मान्यता है कि इस मस्जिद के निर्माण में इस्तेमाल किए गए खंभे और अन्य वस्तुएं पहले हिंदू और जैन मंदिर के भंडारों से प्राप्त की गई थीं। इसके बाद के शासकों ने इस मस्जिद का विस्तार करवाया था। शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने सन 1211-1236 के बीच और अलाउद्दीन खिलजी ने सन 1296-1316 के बीच मस्जिद के कुछ हिस्सों को जोड़ा था। यह मस्जिद हिंदू और इस्लामी कला के अंतर्गत निर्मित की गई थी। इस मस्जिद में एक लौह स्तंभ भी है, जिस पर गुप्तकाल की लिपि में संस्कृत में लिखा हुआ है।
इस प्रकार, कार्बनिंग तकनीक ने पत्थरों के अद्यतन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा निर्मित मस्जिद इसका एक उदाहरण है। यह तकनीक न केवल पत्थरों को नया आकार देती है, बल्कि पुराने निर्माणों की महत्ता को भी बरकरार रखती है।