नफरत करो और गर्व करों, राष्ट्रवाद के दो कोर प्वाइंट

नफरत करो और गर्व करों, राष्ट्रवाद के दो कोर प्वाइंट

अरविन्द कुमार श्रीवास्तव
-नफरत करों और गर्व करों
-मोैलिक अधिकार हुए गायब

वाराणसी। राष्ट्रवाद शब्द में वह सब कुछ समाहित है जो सच्चे अर्थो में किसी भी देश के सच्चे नागरिक में होना चाहिए लेकिन समय बदला और हमने राष्ट्रवाद शब्द के भी पर्याय खोजने या कहें अपने ढंग से उसका अर्थ तलाशने लगे हैं। आज देश में ही हम ही राष्ट्रवाद के हितैषी और दूसरा कोई नहीं। इस पर टीवी चैनलों पर डिबेट चल रही है। हर कोई राष्ट्रवाद की दुहाई देने में इतना अधिक परेशान है कि आज हमारें अन्य मौलिक अधिकार राष्ट्रवाद शब्द के आगे बौना लगने लगे हैं । आज देश में राष्ट्रवाद के दो सबसे कोर प्वाइंट दिखने लगे हैं। इसे हमारी मीडिया जगत भी पूरी तरह से हवा भी दे रही है। जिसमें पहला… नफरत करो और दूसरा……..गर्व करो।


आइए हम पहले प्वांट पर आते है लेकिन प्रश्न उठता है कि नफरत किससे करो ?


जहां मुसलमान हैं वहां मुसलामन से करो। जहां मुसलमान नहीं हैं सरदार हैं, वहां सरदार से कर लो। ईसाईयों से कर लो, पर नफरत करो। क्या कहा ! नफरत करने के लिए आसपास पराया धर्म नहीं है?? कोई बात नहीं, अपने भीतर से किसी एक को अलग करके उससे नफरत कर लो। हरियाणा में हो तो जाटों से नफरत कर लो। जगह विशेष पर दलितों से कर लो। बिहार में यादवों से कर लो, पर नफरत करो। अगर सवर्ण हैं और हमारे झांसे में नहीं हैं तो उन्हें जयचंद बता के उनसे नफरत कर लो। अपने देवता के फेल होने के पीछे वजह अपने देवता में नहीं, उनमें ढूंढो जिनसे नफरत है।
अगर उनसे नफरत नहीं हो तो उनसे नफरत बना दो। नोटंबदी के वक्त में बैंक कर्मचारियों से नफरत करो और उन्हें निकम्मा और लालची बोल कर नोटबंदी फेल होने का जिम्मेदार बना दो। वे हिंदू हैं पर रेलवे में काम करते हैं और उसे बेचे जाने का विरोध करते हैं तो उन्हें निठल्ला और मु्फ्तखोर बोल के उनसे नफरत कर लो। कभी बॉलीवुड,कभी जेएनयू, कभी जामिया, कभी पढ़ती-लिखती लड़कियां, कभी रोजगार मांगते युवा जब जहां जिससे जरूरत हो ! नफरत कर लो।

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नफरत के अलावा दूसरा काम गर्व करना है

किसी चीज पर गर्व करना हैजो है उसी पर गर्व कर लो। हिंदू होेने पर गर्व कर लो। भारतीय होने पर गर्व कर लो। हमारे सैनिक मर रहे हैं, उनके मरने पर गर्व कर लो। कोविड से डॉक्टर भी मर रहे हैं उनके सेवा और बलिदान पर गर्व कर लो। दूर मामा के साला का बेटा बैंक में लग गया, गर्व कर लो। कोई दोस्त जज लग गया। तुम्हें क्या करना है?? गर्व करना है। तुम्हारे आस पास किसी ने कुछ भी कर लिया, भले ही आप उसके ना तीन में, न तेरह में पर उसपे गर्व कर लो। अपनी लगी पड़ी है, छोड़ो ना उसे। नफरत करो और गर्व करो। इलाज के अभाव में मर रहे हो तो गर्व करो कि राष्ट्रवाद के काल में मर रहे हो।
और क्या सब नहीं करना है? सवाल नहीं करना है !
तर्क नहीं करना है !
हिसाब नहीं लेना है !
गर्व में इतना चूर रहना है कि ऐन अपने मरने वाली हालत आने तक उसका पता न लगे। आप जिस समाज में हैं उसमें अभूतपूर्व तबाही आई हुई है। श्मशान, घर, बाहर, नदी, नाले सब लाशों से पटे हैं। आप क्या करेंगे?? सवाल तो करना नहीं है, गर्व करने की हालत भी नहीं है, नफरत भी जोर नहीं मार रही है।
तो….. नफरत को एक किक दो, और इजराइल पर गर्व कर लो, पर भगवान से मनाना कि इजराइल के लिए गर्व करने वाली और इस संकट की घड़ी में इस संकट के जन्मदाता और प्रसारक के साथ हूं वाली पोस्ट करते-करते कहीं अपना कोई साथ ना छोड़ दे।
तेरे बंधु और नफरती, गर्वीले साथी तब भी… तुम्हारे मरने का दुख नहीं करेंगे, कहीं और नफरत और गर्व खोजने में ही व्यस्त रहेंगे।
क्या प्रकृति, परिवार, समाज, राष्ट्र, प्रतिभाशाली व्यक्तियों, गौरवशाली अतीत, पुरातन संस्कृति पर गर्व, हमारे कर्म ये कारण हमें मनुष्य और मनुष्यता के बेहद करीब लाकर खड़ा करने के लिए काफी नहीं हैं।

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