
पंडित प्रसाद दीक्षित
ज्योतिषाचार्य एवं पूर्व ट्रस्टी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी
-स्त्री व पुरुष दोंनो रख सकते हैं यह व्रत
-एकादशी तिथि शाम 4ः29 तक है
वाराणसी। विष्णु शयनी एकादशी का व्रत भगवान श्रीहरि के निमित्त किया जाता है। धर्मशास्त्र से स्पष्ट है कि एकादशी व्रत करनेवालों को इस संसार में समस्त प्रकार का सुख-वैभव अवश्य प्राप्त होता है। एकादशी व्रत के विषय में यजुर्वेद संहिता में भी कहा गया है। मत्स्य, कूर्म, ब्रह्मांड, वाराह, स्कंध तथा भविष्य आदि सभी पुराणों में अनेक वर्गों की विधियां तथा विवरण देखने में आते हैं। व्रत के बाद व्रत कथा सुनाने की विधि का वर्णन पुराणों में यत्र-तत्र-सर्वत्र सुलभ है। ’हेमाद्रिव्रतखंड’ में व्रत करने के अधिकार के विषय में भी लिखा गया है। चारों वर्णों के स्त्री पुरुषों का व्रत में अधिकार है, किंतु व्रतकाल में निर्दिष्ट गुणों की नितांत आवश्यकता है। अपने वर्ण के अनुसार ही व्रत करें। जो वेद का निंदक नहीं है उसी का व्रत में अधिकार है। शास्त्र के मतानुसार कुमारी को पिता की आज्ञा, सौभाग्यवती को पति की आज्ञा और सम्मति लेकर व्रत करना चाहिए अन्यथा व्रत निष्फल हो जाता है।
आषाढ़ मास शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि विष्णु शयनी एकादशी नाम से प्रसिद्ध है। एकादशी मंगलवार यानि 20 जुलाई 2021 ई. को है। एकादशी तिथि शाम 4ः29 तक है, इसके बाद द्वादशी तिथि लग जाएगी। आज से 4 माह के लिए भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और सोमवार दिनांक 15 नवंबर 2021 ई. को कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि देवोत्थान एकादशी कुछ जागेंगे। विष्णु शयनी एकादशी के बाद 4 महीना तक भगवान शिव की पूजन का भी विधान है स शास्त्र के मतानुसार जब राजा बलि से तीन पग भूमि दान लेने के पश्चात भगवान श्री हरि बलि पर अत्यंत प्रसन्न हुए तब भगवान विष्णु ने बलि से कहा कि तुम वरदान मांग लो। राजा बलि की इच्छा थी कि भगवान विष्णु पाताल लोक में बलि के साथ ही निवास करें। तब भगवान विष्णु ने कहा आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी से 4 माह के लिए वे पाताल लोक में ही निवास करेंगे स इस प्रकार चातुर्मास का भी प्रारंभ हो जाता है। एक कथा के अनुसार असुर शंखासुर जब मारा गया तब भगवान विष्णु थक गए थे और वह 4 माह तक छीर सागर में विश्राम करने चले गए। यहीं से 4 महीने का चातुर्मास प्रारंभ हुआ। 4 महीने बाद कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान श्री हरि उठ जाते हैं और उसके बाद ही सारे शुभ कार्य प्रारंभ भी होते हैं। इन चार महीनों तक भगवान विष्णु के के निमित्त एक बार भोजन करना इत्यादि शुभ माना जाता है। इन 4 महीनों में भगवान विष्णु के ध्यान के साथ ही भगवान शिव के पूजन का भी विधान है। भगवान शिव के पूजन से श्रीहरि अत्यंत प्रसन्न होते होते हैं।
विष्णु शयनी एकादशी के दिन नियम संयम से व्रत रहे । दिन में व्रत रहते हुए रात्रि को हरि कीर्तन करें। एकादशी व्रत के विषय में वशिष्ठ का वचन है की जिस तिथि में सूर्योदय होता है वह तिथि यदि मध्यान्ह तक न रहे तो वह खंडा तिथि कहलाती है। उसमें व्रत आरंभ नहीं करना चाहिए। इसके विपरीत अखंडा तिथि में व्रत आरंभ करना उचित है। व्रत के पूर्व दिन संयम रख संकल्प व्रत आरंभ करना होता है। यज्ञ, विवाह, श्राद्ध, होम, पूजा, पुरश्चरण आदि में आरंभ से पहले सूतक लगता है, आरंभ के बाद नहीं लगता। एकादशी के दिन भोजन का निषेध माना गया है। दूध अथवा जलपान करके उपवास हो सकता है। एकादशी का व्रत सर्व साधारण जनता के लिए अपरिहार्य सिद्ध होता है स गृहस्थ, ब्रह्मचारी, सात्विक किसी को भी एकादशी के दिन भोजन नहीं करना चाहिए। यह नियम शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों में लागू रहेगा। असमर्थ रहने पर ब्राह्मणद्वारा अथवा पुत्रद्वारा उपवास कराने का विधान वायुपुराण में मिलता है। मार्कंडेय स्मृति के अनुसार बाल, वृद्ध, रोगी भी फल का आहार करके एकादशी का व्रत कर सकते हैं। वशिष्ठ स्मृति के अनुसार दशमी युक्त एकादशी में उपवास नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से संतान का नाश होता है। एकादशी के दिन बार-बार खाना, मल मूत्र का त्याग करना, मिथ्या बोलना तथा ईर्ष्या करना निषेध माना गया है। जो लोग एकादशी के दिन नियम पूर्वक व्रत-उपवास करते हैं, उनके जीवन में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती।