What is No Confidence Motion? क्या है अविश्वास प्रस्ताव कब पहली बार लाया गया, क्या है नियम, कितनी सरकारें गिरी

What is No Confidence Motion? क्या है अविश्वास प्रस्ताव कब पहली बार लाया गया, क्या है नियम, कितनी सरकारें गिरी

What is no confidence motion?

अविश्वास प्रस्ताव एक ऐसा प्रस्ताव है जो केंद्र या राज्य में विपक्षी पार्टी को यह लगता है कि सरकार के पास सदन चलाने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं है या वो सदन में विश्वास खो चुकी है। इस प्रस्ताव को केंद्र में लोकसभा और राज्य में विधानसभा में पेश किया जाता है। इसे पेश करने के लिए कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन चाहिए। प्रस्ताव को मंज़ूरी मिलने के बाद, सत्ताधारी पार्टी को साबित करना होता है कि उन्हें सदन में ज़रूरी समर्थन हासिल है। अविश्वास प्रस्ताव के उपसर्ग में सरकार को अपने समर्थन को बचाने की चुनौती स्वीकारनी पड़ती है। सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव निचले सदन के किसी सदस्य द्वारा लोकसभा के प्रक्रिया और व्यवहार संबंधी नियम 198 के अंतर्गत लाया जा सकता है।

अविश्वास प्रस्ताव की प्रारंभिक इतिहास

1952 में बदले नियम: संख्या 30 से बढ़कर 50 हो गई

भारत के संसद में अविश्वास प्रस्ताव को लेकर प्रावधान में बदलाव हुआ था। 1952 में लोकसभा के नियमों में यह प्रावधान किया गया था कि एक अविश्वास प्रस्ताव को सिर्फ 30 सांसदों के समर्थन से लाया जा सकता है, लेकिन इस संख्या को बढ़ाकर 50 कर दिया गया है। इससे अब पहले से ज्यादा सांसदों का समर्थन आवश्यक हो गया है अविश्वास प्रस्ताव को पारित करने के लिए।

पहली बार अविश्वास प्रस्ताव: जवाहर लाल नेहरू के ख़िलाफ़

देश का पहला अविश्वास प्रस्ताव साल 1963 में जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ कांग्रेस नेता आचार्य जेबी कृपलानी ने पेश किया था। चीन से युद्ध में हार के बाद लाए गए इस प्रस्ताव के पक्ष में 62 और विरोध में 347 मत पड़े थे।

अविश्वास प्रस्ताव को लेकर सदन में चार दिनों तक चली चर्चा में लगभग 40 सांसदों ने भाग लिया। विपक्ष ने इस प्रस्ताव के खिलाफ विरोध किया और सरकार का समर्थन किया। इस प्रस्ताव के विरोध में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी अपने पक्ष का समर्थन किया और इसे नकार दिया। अंततः, इस अविश्वास प्रस्ताव को गिरा दिया गया।

यह अविश्वास प्रस्ताव की अवधि और अंतिम परिणाम के बारे में उपरोक्त जानकारी दी गई है। अविश्वास प्रस्ताव भारतीय संसद में लोकतंत्र के महत्वपूर्ण प्रावधानों में से एक है जिसके माध्यम से सरकार के कामकाज और नीतियों पर सवाल उठाए जा सकते हैं। यह संसदीय प्रक्रिया भारतीय लोकतंत्र की मज़बूती को दर्शाती है और सरकार को जनता के प्रतिनिधियों के सामने जवाबदेह बनाती है।

कई बार गिर अविश्वास प्रस्ताव के प्रभाव व बाद में सरकारें गिर चुकी हैं

भारत में अविश्वास प्रस्ताव के प्रभाव से केवल एक बार ही सरकार गिरी है। तब वोटिंग से पहले ही पीएम मोरारजी देसाई ने इस्तीफा दे दिया था। यह वर्ष 1979 की घटना है जब कांग्रेस के वाईबी चव्हाण ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। मोरारजी देसाई के खिलाफ इससे पहले एक और अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। अब तक विश्वास प्रस्ताव पेश करने के बाद तीन सरकारें गिर चुकी हैं- 1990 में वीपी सिंह सरकार, 1997 में एचडी देवेगौड़ा की सरकार और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार। जबकि दो बार अविश्वास प्रस्ताव के चलते सरकार गिरने की स्थिति को देखते हुए पहले ही इस्तीफा दे दिया था।

अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास

भारतीय इतिहास में, अविश्वास प्रस्ताव का यह 28वां उदाहरण है। इसके पहले भी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ 15 अविश्वास प्रस्ताव पेश किए गए थे, जिससे साफ़ है कि इस तरह के प्रस्ताव देश के राजनीतिक इतिहास में नहीं नए हैं।  इनमें से तीन लाल बहादुर शास्त्री की सरकार के खिलाफ थे। वर्ष 1964 में लाल बहादुर शास्त्री सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबी अवधि (24 घंटे) तक बहस हुई।वर्ष 2003 में लोकसभा में नेता विपक्ष सोनिया गांधी ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था जो 189 के मुकाबले 314 मतों से गिर गया।

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नरेंद्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ प्रस्ताव

वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ जो अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है वह पहला नहीं है। 2018 में लाए गए उस प्रस्ताव में विपक्ष को 325 के मुक़ाबले 126 वोट ही हासिल हुए थे। इसके बाद भी मानसून सत्र के दौरान, इस प्रस्ताव के चार दिनों तक 21 घंटे चली चर्चा में 40 सांसदों ने भाग लिया था, और अंत में 20 जुलाई को मोदी सरकार को 199 वोट के अंतर से अविश्वास प्रस्ताव को हरा दिया गया था।

पंडित नेहरू की अविश्वास प्रस्ताव पर बातें

अविश्वास प्रस्ताव पर 41वें सदस्य के रूप में 22 अगस्त को प्रधानमंत्री नेहरू ने यह कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव का लक्ष्य सरकार को हटाना होता है या होना भी चाहिए, और इसे वो सामर्थ्य से प्रस्तुत करेंगे। उन्होंने प्रस्ताव के समर्थन और विरोध की सुनी और समझने की कोशिश की कि उन्हें किस चीज़ से परेशानी हुई। उनका यह मानना था कि अविश्वास प्रस्ताव का लाभ हो सकता है लेकिन यह थोड़ी अवास्तविक भी है। वे इसे समर्थन करते हैं और समय-समय पर इस तरह के टेस्ट करवाने की चर्चा का स्वागत करते हैं।

इस रूप में, अविश्वास प्रस्ताव विशेषज्ञ बहस और वोटिंग के माध्यम से सरकार के समर्थन और विरोध को मापने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। यह एक राजनीतिक प्रक्रिया है जो नागरिकों के नियंत्रण में होती है और लोकतंत्र के मूल तत्वों को सजीव रखती है।

By Vijay Srivastava

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