
ऐतिहासिक घटना क्रम
What was the reason when Maneka Gandhi left Indira Gandhi’s residence at midnight : आज हम आपको एक ऐसी घटना के बारें में बताने जा रहे है जिसने गांधी परिवार में विघटन की पथ कथा लिखी। जो आज 40 वर्षो के बाद भी एक नहीं हो सके। इन दिनों तमाम राजनीतिक कयासों के बाद भी अभी तक गांधी परिवार एक नहीं हो पा रहे हैं। आज हम आपको इस आर्टिकंल में उस दिन के बारें में बतायेंगे कि आखिर उस दिन भर क्या हुआ जिससे आधी रात को मेनका गांधी को घर छोड़ना पडा था। वह दिन था 28 मार्च, 1982 को तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी ने नई दिल्ली में अपनी सास के आधिकारिक आवास, 1, सफदरजंग रोड को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ दिया। उनके जाने के दिन और उस रात को क्या हुआ। इस बारें में तरह-तरह की चर्चा होती रहती है। उस अन्तिम रात को इंदिरा गांधी और मेनका गांधी क्या हुआ। उस काली रात को दोंनो परिवार के साथ एक कड़वा और लंबा विवाद हुआ, जो अंततः उनके और गांधी परिवार के बीच दरार का कारण बना।
मेनका के प्रस्थान तक की घटनाओं की शुरुआत अगर गहराई से देखा जाए तो 1970 के दशक की शुरुआत में हुई जब उन्होंने संजय गांधी से शादी की, जो उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रभावशाली सदस्य थे और अपनी मां इंदिरा गांधी के करीबी विश्वासपात्र थे। हालाँकि, उनके रिश्ते में जल्द ही खटास आ गई, और 1979 में संजय गांधी के आपातकाल के बाद थोड़े समय के लिए जेल जाने के बाद वे अलग हो गए।1980 में एक विमान दुर्घटना में संजय की मृत्यु के बाद, मेनका ने खुद को गांधी परिवार से दूर करना शुरू कर दिया और पशु अधिकारों और पर्यावरण के मुद्दों में अधिक सक्रिय रुचि ली। इससे उनकी सास, इंदिरा गांधी, जो उस समय भारत की प्रधान मंत्री थीं और मेनका की सक्रियता को कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक एजेंडे के लिए खतरे के रूप में देखा, के साथ तनाव हो गया।

यह बवाल और उस समय बढा जब दिसंबर 1981 में आया, जब मेनका ने संडे ऑब्जर्वर, एक प्रमुख भारतीय समाचार पत्र को एक साक्षात्कार दिया, जिसमें उन्होंने नसबंदी पर सरकार की नीति और भोपाल गैस त्रासदी से निपटने की आलोचना की, जिसमें हजारों लोग मारे गए या घायल हुए . साक्षात्कार को व्यापक रूप से गांधी परिवार के अधिकार के लिए सीधी चुनौती के रूप में देखा गया था, और मेनका को बाद में दिसंबर 1981 में कांग्रेस पार्टी की एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेने से रोक दिया गया था।
इस घटना के बाद, मेनका ने गांधी परिवार के आधिकारिक आवास को छोड़ने का फैसला किया, जहां वह अपने बेटे वरुण गांधी और अपनी सास इंदिरा गांधी के साथ रह रही थीं। उस रात की घटनाएँ रहस्य में डूबी हुई हैं, लेकिन मेनका के अनुसार, उन्हें इंदिरा गांधी के सुरक्षा गार्डों ने घर छोड़ने के लिए मजबूर किया, जिन्होंने उन्हें हिंसा की धमकी दी।
2009 में टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ एक साक्षात्कार में, मेनका ने उस रात की घटनाओं का विस्तार से वर्णन किया। उसने कहा कि जब उसने अपना बैग पैक कर लिया था और जाने के लिए तैयार थी, तो उसे इंदिरा गांधी के सुरक्षा गार्डों ने रोक लिया, जिन्होंने मांग की कि वह अपना पासपोर्ट और अपनी कार की चाबी सौंप दें। जब उसने मना किया, तो गार्ड ने कथित तौर पर उसे शारीरिक हिंसा की धमकी दी और उसे जबरन घर से निकाल दिया।
मेनका ने यह भी दावा किया कि उनकी सास, इंदिरा गांधी, घटना के दौरान मौजूद थीं, लेकिन गार्डों को उनके साथ मारपीट करने से रोकने के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी हमेशा उनके प्रति शत्रुतापूर्ण थीं और उन्होंने उन्हें गांधी परिवार के सदस्य के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया।
हालांकि, घटना के अन्य श्रोतों से पता चलता है कि मेनका की घटनाओं का संस्करण पूरी तरह से सटीक नहीं हो सकता है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, मेनका वास्तव में घटना से पहले कई दिनों से घर छोड़ने की योजना बना रही थीं और एक नए आवास में जाने की व्यवस्था कर रही थीं। यह भी संभव है कि सुरक्षा गार्ड केवल इंदिरा गांधी के आदेशों का पालन कर रहे थे और स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर रहे थे।
सच्चाई जो भी हो, मेनका का 1, सफदरजंग रोड से जाना उनके जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है। वह आगे चलकर एक प्रमुख पशु अधिकार कार्यकर्ता और संसद सदस्य बनीं, और वह कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार की मुखर आलोचक बनी रहीं।
लेखकों ने एक कारण 27 मार्च 1982 को मेनका का स्पीच को जिम्मेदार माना हैं-
जबकि वहीं कुछ लोंगो का मानना है कि संजय गांधी की मृत्यु तक ले देकर हालात ठीक थें। एक छत के नीचे मेनका व इन्दिरा गांधी रहती थी लेकिन संजय गांधी की मृत्यु के बाद इन्दिरा गांधी ने जब राजनीति विरासत अपने बडे बेटे राजीव गांधी को सौपने का फैसला किया तो तब से दोंनो के बीच दरारें पैदा होने लगी। प्रख्यात लेखक खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा में इस बात का उल्लेख करते हुए लिखा है कि यह विवाद बाद में इतना तूल पकडा कि दोंनो का एक छत के नीचे रहना मुश्किल हो गया। और जिसका पटाक्षेप 28 मार्च 1982 को मीडिया और पुलिस की मौजूदगी में मेनका गांधी अपने पुत्र वरूण गांधी को लेकर कार से तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के आवास से आधी रात को निकल गयी।
इस बात के समर्थन में स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो ने भी अपनी कितात‘द रेड साडी’ में उस रात का स्पष्ट उल्लेख करते हुए लिखा है कि ‘‘मेनका गांधी को यह बात नागवार गुजरी कि कैसे उनके पति की राजनीतिक विरासत उनके भाई द्वारा छीन ली गई।’’ इस विवाद ने तूल उस समय और पकड लिया जब संजय गांधी के समर्थकों के साथ मेनका गांधी ने एक बैठक कर उसमें जोरदार ढंग से भाषण दिया। बताया जाता है कि उस समय इन्दिरा गांधी लंदन में थी। 28 मार्च 1982 की सुबह इंदिरा गांधी जब वापस अपने आवास में लौटती हैं तो घर में मेनका गांधी के अभिवादन का सास यानि इन्दिरा गाधी ने काफी रूखे अंदाज में जवाब दिया और मेनका से कहा कि ‘‘ हम बाद में बात करेंगे’।
पुस्तक में वह लिखते है कि इसके बाद मेनका गांधी ने स्वंय अपना कमरा अन्दर से बंद कर लिया।
नौकर ने एक घंटे के बाद आकर मेनका गांधी से कहां कि उन्हें प्रधानमंत्री बुला रही है। जेवियर मोरो लिखते है कि ‘‘कमरें में कोई नहीं था। उन्हें कुछ मिनट इंतजार करना पडा। अचानक मेनका ने शोर सुना। उन्हें इन्दिरा गांधी दिखाई दीं। वह गुस्से से नंगे पांव पहुंची थीं।इस दौरान उनके गुरू धीरेंन्द्र ब्रह्मचारी और सचिव धवन भी थे। वह उन्हें इस घटना का गवाह बनाना चाहती थीं।’’ उन्होंने अपने पुस्तक में लिखा है कि ‘‘इंदिरा गांधी ने मेनका की तरफ उंगली उठाई और चिल्लाई। इंदिरा ने मेनका से कहा कि फौरन इस घर से निकल जाओ! मैंने तुमसे लखनऊ में भाषण देने के लिए मना किया था। लेकिन तुमने वही किया जो तुम चाहती थी। तुमने मेरी बात नहीं मानी। तुम्हारें हर एक शब्द में जहर था। यंहा, इस इस घर से बाहर निकल जाओ। इस घर को अभी छोड दो! अपनी मॉ के घर वापस जाओ!’’
आगे जेवियर मोरो लिखते हैं कि मेनका गांधी ने उसके बाद अपने को कमरें में बद कर अपनी बहन अम्बिका को फोन किया और सारी बातें बताते हुए प्रेस को बताने को कहा। जिससे उस रात लगभग 9 बजे पीएम आवास के प्रवेश द्वार पर देखते-देखते देश-विदेश के संवाददाताओं और फोटोग्राफरों की भीड जमा हो गयी। बताया जाता है कि इस दौरान मेनका गांधी की बहन अम्बिका भी पहुंच गयी और उसने मेनका को निकाले जाने का विरोध भी किया। यहा तक इन्दिरा गांधी ने कहा था कि कोई सामान नहीं लेकर जाना है लेकिन अन्ततः कुछ सामान एक कार में रख कर रात लगभग 11 बजे मेनका गांधी ने अपनी सास व इन्दिरा गांधी का आवास हमेशा-हमेशा के लिए छोड दिया।
बहरहाल जिस रात मेनका गांधी ने इंदिरा गांधी का घर छोड़ा वह गांधी परिवार और भारतीय राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने एक परेशान विवाह के अंत और मेनका और गांधी परिवार के बीच एक कड़वे झगड़े की शुरुआत को चिह्नित किया, जो आज भी जारी है। उस रात की घटनाएँ विवाद और अटकलों का विषय बनी रहती हैं, और सच्चाई कभी नहीं हो सकती है।