भगवान बुद्ध के विचारों से ही वैश्विक समस्याओं का समाधान संभव

वाराणसी। मुलगंधकुटी बौद्ध विहार के 92वें वार्षिकोत्सव के अवसर पर महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया की ओर तीन दिवसीय कार्यक्रम के तहत सोमवार को मूलगंध कुटी विहार मंदिर परिसर में धम्म सभा का आयोजन किया गया।
धम्म सभा में मुख्यअतिथि के पद से सम्बोधित करते हुए विहाराधिपति महाबोधि सोसायटी सांची व जापान के प्रधान संघनायक भिक्षु बनागल उपतिस्स महाथेरो ने कहा कि बुद्ध ने दुनिया को शांति का संदेश दिया। जिसेे आत्मसात कर भारत आज विश्वगुरु की श्रेणी में खडा है। भगवान बुद्ध की ही बताए अष्टांगिक मार्ग पर चलकर आज भी व्यक्ति अपना जीवन सुखमय व शांतिमय कर सकता है। उन्होंने इस दौरान अपने 1962 से 1967 के बीच सारनाथ में बिताए अपने यादगार लमहों को भी लोंगो से शेयर किया।
इस दौरान महाबोधि विद्या परिषद के अध्यक्ष प्रो. राममोहन पाठक ने कहा कि आज जो परिस्थितियां विश्व में हैं ऐसें में भगवान बुद्ध के विचार अपनाने से ही वैश्विक कल्याण संभव है। उनके बताए मार्ग शील, समाधि, प्रज्ञा, मैत्री व करुणा पर अमल करके बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हो सकता है। बुद्ध के राजकुमार से सन्यासी बनने तक की तपस्या प्रेणना व सुचिता देता है। आज भी भगवान बुद्ध के आभा मंडल का ही प्रभाव है कि सारनाथ में प्रवेश करते ही इसका आभास होने लगता है। उन्होंने अनागारिक धर्मपाल को स्मरण करते हुए कहा कि उनके कृत्यों को भुलाया नहीं जा सकता है। स्वामी विवेकानन्द के शिकागों में भाग लेने के पीछे भी अनागारिक धर्मपाल की प्रेरणा थी।


उक्त अवसर पर मुख्य वक्ता के पद से सम्बोधित करते हुए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च सेंटर नई दिल्ली के अनिर्बान मुखर्जी ने कहा कि अनागरिक धर्मपाल जी के अथक प्रयास के चलते ही भगवान बुद्ध के इस पवित्र स्थल सारनाथ का उस समय विकास संभव हो पाया। उन्होंने इस दौरान विस्तार से अनागारिक धर्मपाल के जीवन वृत्तों को रेखाकिंत करते हुए सरकार द्धारा बौद्ध स्थलों के विस्तार के लिए किए जा रहे प्रयासों को भी विस्तार से बताया।


महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के महासचिव भिक्षु पी शिवली थेरो ने इस दौरान कहा कि भगवान बुद्ध की प्रासंगिता आज के दौर में भी उसी तरह से प्रासंगिक है जिस तरह से वह अपने समय में थी। आज के समय में एक मात्र रास्ता भगवान बुद्ध के मागों पर चल कर ही प्राप्त किया जा सकता है। उक्त अवसर पर इंडो-श्रीलंका जम्मुदीप मंदिर के प्रभारी भिक्षु के सिरी सुमेध थेरो ने कहा कि आज भगवान बुद्ध के विचारों को आत्मसात करने से ही विश्व में शान्ति संभव है। उन्होंने कहा कि आज विश्व को भी महसूस होने लगा है कि आज विश्व को युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए। जिसे सयुंक्त राष्ट संघ में हमारें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रभावी ढंग से उठाया। इस दौरान उन्होंने धर्मपाल जी के जीवन के संघषों के क्षणों को भी विस्तार से रेखांकित किया।
उक्त कार्यक्रम का संचालन महाबोधि इन्टर कालेज के प्रधानाचार्य डॉ. प्रवीण श्रीवास्तव व अतिथियों का स्वागत विहाराधिपति भिक्षु आर सुमितानंद थेरो ने किया।

इसके पूर्व आस्था और तपस्या की तपोभूमि सारनाथ में मुलगंधकुटी बौद्ध विहार के 92वें वार्षिकोत्सव के अवसर पर तीन दिवसीय कार्यक्रम के तहत सोमवार को भगवान बुद्ध की पवित्र अस्थि अवशेष की भव्य शोभायात्रा निकाली गयी। जो सारनाथ के ही विभिन्न मार्गों से होते हुए वापस मन्दिर पहुची।


महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के महासचिव भिक्षु पी शिबली थेरो के नेतृत्व में अपराहन 12 बजे हाथी के हौदे पर वियतनामी बौद्ध अनुयायी भगवान बुद्ध की अस्थि अवशेष लेकर बैठ कर शोभायात्रा निकली। शोभायात्रा में सबसे आगे तीन रथों पर वियतनामी बौद्ध अनुयायी बैठे थे। उसके पीछे वियतनामी बौद्ध अनुयायी फूलों का गुलदस्ता लेकर चल रहे थे। इसके पीछे हाथी पर भगवान बुद्ध की पवित्र अस्थि अवशेष कलश था। सैकडों की संख्या में बौद्ध अनुयायी व विद्यालय के छात्र छात्राए हाथों में पंचशील झंडा लेकर चल रहे थे।

तिब्बती बौद्ध मंदिर, आकाशवाणी तिराहा, चौखंडी स्तूप, संग्रहालय से पुरातात्विक खण्डहर परिसर होते हुए मन्दिर पहुची। इस दौरान सयुक्त सचिव भिक्षु सुमित्ता नन्द थेरो, भिक्षु जिनानन्द थेरो, सहित वियतनाम, श्रीलंका, थाईलैंड, जापान, पश्चिम बंगाल, म्यामार,सहित स्थानीय बौद्ध मठ के बौद्ध भिक्षु भी शामिल थे।

By Vijay Srivastava